Thursday 25 April 2024

आज जब वाद सब सुलझने लगे...

आज जब वाद सब  सुलझने लगे।
बेवजह  आप  क्यों  उलझने लगे ?

शाख भी  फिर लचक  टूटने लगी,
फूल भी  जो खिले   मुरझने लगे।

था हमें  भी कभी   शौक ये मगर,
आप क्यों  आग से   खेलने लगे ?

रात भी जा रही क्षितिज पार अब,
चाँद - तारे   सभी   सिमटने  लगे।

दोष  मय का नहीं   होश गुल हुए,
पाँव  ये  आप  ही   बहकने  लगे।

फेर है वक्त का  अजब क्या कहें,
फूल भी आग   बन दहकने लगे।

सो रहे स्वप्न जो    रूठकर कभी,
आज फिर जी उठे  चहकने लगे।

क्या कहें क्या नहीं  सूझता न था,
वो  हमें   हम  उन्हें   देखने  लगे।

आ रही  बात सब समझ अब मुझे,
हादसे   रास्ते      बदलने    लगे।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

No comments:

Post a Comment