Tuesday 30 April 2024

कुछ कहमुकरियाँ माह पर...

आने से उसके आए बहार।
मौसम पे छा जाए निखार।
देख उसे हो शीत नपैत,
क्या सखि साजन ? ना सखि चैत।

नया उछाह, नवजीवन लाता।
साथ सभी के घुलमिल जाता।
घटे कभी ना उसकी साख।
क्या सखि साजन ? ना वैशाख।

आग बबूला सदा वह रहता।
पारा दिनभर चढ़ा ही रहता।
दिखाए बात- बात पर ऐंठ।
क्या सखि साजन ? ना सखि जेठ।

राहत का पैगाम वह लाए।
अब्र सा तपते मन पर छाए।
संग लाए खुशियों की बाढ़।
क्या सखि साजन ? ना आषाढ़।

तन मन का  वह ताप मिटाए।
उस बिन अब तो रहा न जाए।
जाने कहाँ छुपा मनभावन !
क्या सखि  साजन ? ना सखि सावन।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद.( उ.प्र. )
'चयनिका' से

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