लगने दो कुछ हवा बदन में...
लगने दो कुछ हवा बदन में।
निकल न जाएँ प्राण घुटन में।
आज रात पाला बरसेगा,
कुहर घना है देख गगन में।
खोज रहा क्या सुख ये पगला,
रुक-रुक चलता चाँद गगन में।
आती होगी चीर गगन को,
किरन छुपी जो तमस गहन में।
लक्ष्य प्राप्ति हित पथिक अकेला,
चलता जाता दूर विजन में।
खुशी निराली छायी- जब से
चाह उगी है मन-उपवन में।
मद मत्सर औ स्वार्थ लिप्त हो,
झुलस रहा नर द्वेष-अगन में।
बारिश की अब झड़ी लगेगी,
घिर आए हैं मेघ नयन में।
कतरा-कतरा चीख रहा है,
भभक रही है आग बदन में।
अंतस सबका चीर रही है,
उफ ! कितनी है पीर कहन में।
जितने जन उतने मत 'सीमा',
बातें अनगिन भरीं जहन में।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
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