Thursday 25 April 2024

लगने दो कुछ हवा बदन में...

लगने दो  कुछ  हवा  बदन में...

लगने दो  कुछ  हवा  बदन में।
निकल न जाएँ  प्राण घुटन में।

आज   रात    पाला   बरसेगा,
कुहर  घना  है  देख  गगन  में।

खोज रहा क्या सुख ये पगला,
रुक-रुक चलता चाँद गगन में।

आती  होगी   चीर  गगन  को,
किरन छुपी जो तमस गहन में।

लक्ष्य प्राप्ति हित पथिक अकेला,
चलता  जाता  दूर  विजन  में।

खुशी निराली  छायी- जब से
चाह उगी  है   मन-उपवन  में।

मद मत्सर औ स्वार्थ लिप्त हो,
झुलस रहा नर  द्वेष-अगन में।

बारिश की अब झड़ी लगेगी,
घिर  आए  हैं  मेघ  नयन में।

कतरा-कतरा   चीख रहा है,
भभक रही है आग बदन में।

अंतस सबका चीर रही है,
उफ ! कितनी है पीर कहन में।

जितने जन उतने मत 'सीमा',
बातें अनगिन भरीं जहन में।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

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