Tuesday 30 April 2024

सरसी-सरसिज...

सच्चाई के पथ पर चलकर, खूब कमाना नाम।

अंबर को छू भू पर आना, करना परहित काम।

अहं भाव औ स्वार्थ लिप्तता, डालेंगे व्यवधान।

विनत भाव से झुकना होगा, चाहो यदि उत्थान।१।


साज सजाए बैठा सारे, सच से हो अंजान।

हिंसा के पथ पर चल करता, अपना ही नुकसान।

सबमें निज को निज में सबको, देख मनुज नादान।

किस खातिर ये पाँव पसारा, ले फिर ये संज्ञान।२।


मुश्किल में जो देख किसी को, बनता उनकी ढाल।

किस्मत उसके नाज उठाए, चूमे उन्नत भाल।

सत्कर्मों की सबल करों से, रखता जो बुनियाद।

रहती खुशबू सदा फिजां में, करें उसे सब याद।३।


औरों पर आरोप लगाए, करे गलत खुद कर्म।

समझ न  आए  करनी  तेरी, कैसा  तेरा  धर्म।

मानव का तन ले पशुओं-सा, ढोता अपना भार

फल कर्मों का मिलकर रहता, गुन गीता का सार।४।


हों न तिरोहित भाव सुकोमल, आ न जाए विकार।

रखना मन के हर कोने को,   रोशन सभी प्रकार।

भाव तामसिक उठें न मन में, सत पर हो न प्रहार।

सूरज के छिपते ही जैसे, बढ़ आता अँधियार।५।


हमने जग की रीत न जानी, नहीं तुम्हारा दोष।

बोध नहीं था इन बातों का,  इसीलिए था रोष।

छोड़ो भी क्या करना करके, उन बातों पर सोच।

बनी रहे रिश्ते-नातों में,  वही पुरानी लोच।6।


© सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद ( उ.प्र.)

'चयनिका' में प्रकाशित


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