Sunday 19 March 2023

चंद दोहे नारी पर ...

अपनी सुविधा के लिए, जोड़-तोड़ कर कर्म।
नियम पुरुष ने खुद गढ़े, कहा उन्हें फिर धर्म।।

अपराधों का आंकड़ा,  बढ़ जाता हर बार।
नर पर आश्रित नारियाँ, सहने को लाचार।।

जागो जग की नारियों, लो अपने अधिकार।
त्याग तुम्हारा ये पुरूष,    बना रहे हथियार।।

जानें समझें बेटियाँ, अपना हर अधिकार।
निज पैरों पर हों खड़ी, कहे न कोई भार।।

रहें सुरक्षित नारियाँ,  मिले उन्हें भी मान।।
लक्ष्य यही लेकर चले, मिशन शक्ति अभियान।

नवरातों में कर रहे, माता का गुणगान।
घर-घर में नारी सहे, कदम-कदम अपमान।।

वृत्ति आसुरी त्याग दो, बनो मनुष्य महान।
नारी का आदर करो, पाओ खुद भी मान।।

पीछे कहाँ अब नारी, गढ़ती नव प्रतिमान।
बना रही हर क्षेत्र में, नित नूतन पहचान।।

अब नारी के रूप में, हुआ बहुत बदलाव।
हर क्षण आगे बढ़ रही, पाँव नहीं ठहराव।।

नारी बहुत सशक्त है, दीन-हीन मत जान।
सकल सृष्टि की जननी शक्ति-पुंज महान।।

नारी नर की जननी, नारी जगत- आधार।
ये सृष्टि क्या सृष्टा भी, नारी बिन निरधार।।

नर की यह सहधर्मिणी, क्योंकर सहे अन्याय।
है समान अधिकारिणी, सुलभ इसे हो न्याय।।

चेरी नहीं ये तेरी,         गलतफहमी न पाल।
बिगड़ गयी तो सोच ले,  क्या कर देगी हाल।।

नारी अब अबला नहीं, करती डटकर वार।
अपने पैरों पर खड़ी, नहीं किसी पर भार।।

पुरुष सदा हावी रहें, चले उन्हीं का राज।
दब रह जाती बीच में, नारी की आवाज।।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी
मुरादाबाद

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