ऐसी माँ के जने हैं हम...
बूढ़े गमों को ढोते - ढोते
जिंदा लाश बने हैं हम
गर्द- ए- दर्द की कर्दम में
आपादमस्तक सने हैं हम
खुशियों के इस उत्सव में
नगमे गम के कौन सुने
रोड़े-पत्थर पथ में आएँ
राहें ऐसी कौन चुने
शिकवा करें क्या जग से
खुद से ही अनमने हैं हम
झेलते रहे घात पर घात
पर पीर न अधरों पर आई
कहते किससे मन की बात
देते आखिर किसे सफाई
पूछता हैरान हो गम भी
किस माटी से बने हैं हम
सुख को हम मीत समझ बैठे
पर हाय कहाँ वो अपना था
जब आँख खुली तो जाना
वो तो एक मोहक सपना था
झर गए सुख के पात सभी
फिर भी देखो तने हैं हम
बूढ़े गमों को ढोते - ढोते
जिंदा लाश बने हैं हम
गर्द- ए- दर्द की कर्दम में
आपादमस्तक सने हैं हम
-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
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