Sunday 3 May 2020

गो कोरोना गो कोरोना....

गो कोरोना, गो कोरोना....

ये करो ना वो करो ना
क्या करो और क्या करो ना
आयी कैसी मनहूस घड़ी ये
जां साँसत में आ रहा रोना
गो कोरोना, गो कोरोना....

साथ न रहना साथ न सोना
सोते लेकर अलग बिछोना
हाथ भी धोते रगड़-रगड़ कर
हो न जाए कुछ अनहोना
गो कोरोना, गो कोरोना...

बाहर न जाते मास्क लगाते
अपने ही घर में गश्त लगाते
बड़ी वीरानगी पसरी हर सूं
सूना जग का कोना-कोना
गो कोरोना, गो कोरोना...

प्रच्छन्न रूप में क्यों तुम आये
घात भी करते नज़र  चुराये
कौन जनम का बैर हो पाले
हिम्मत हो तो खुलके कहो ना
गो कोरोना, गो कोरोना...

भेजे हो किसके कुछ तो बोलो
चुप न रहो यूँ राज तो खोलो
लड़ो वीर से समर-भूमि में
छुपछुपकर यूँ वार करो ना
गो कोरोना, गो कोरोना...

लगते  कोई असुर मायावी
नजर न आए कहीं छाया भी
अमूर्त रूप में काल बन आए
करते हो क्या जादू-टोना
गो कोरोना, गो कोरोना...

जिसकी शह पे तुम यहाँ आए
लाज उसे क्या जरा न आए
वजूद उसका कितना बौना
खेल रहा जो खेल घिनौना
गो कोरोना, गो कोरोना...

जहाँ से आए जाओ वहीं अब
बेवजह यूँ न सताओ हमें अब
कुछ तो अपना मान भी रखो
ढीठ से आखिर जमे रहो ना
गो कोरोना, गो कोरोना...

लॉक डाउन हुए हम घर में
अपराधी से अपनी नजर में
बिन गलती के दण्ड मिले तो
कहो, आए न किसको रोना
गो कोरोना, गो कोरोना

निज गृह में हम बंदी तुम्हारे
कैदी- जीवन जीते हारे
बहुत हुआ अब बस भी करो ना
कैद से अपनी मुक्त करो ना
गो कोरोना, गो कोरोना...

-डॉ.सीमा अग्रवाल
सी-89, जिगर कॉलोनी
मुरादाबाद (उ.प्र.)

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