भाखा किसकी हाय फली है
सूनी शहर की हर गली है
काँप रही है दुनिया थरथर
बैठा सर पर काल बली है
दिन बीता अफरातफरी में
गम में डूबी साँझ ढली है
अच्छे दिन अब क्या आयेंगे
मुरझ गयी उम्मीद - कली है
दूर है मंजिल साथ न कोई
राह पथरीली दलदली है
जीवन-संध्या खड़ी सामने
उमर जवानी बीत चली है
क्या-क्या और देखना बाकी
घड़ी कठिन बड़ी बेकली है
भोग रहा नर फल करनी का
खग-मृगकुल में बात चली है
लगता अगली राह मनुज की
मुड़ निसर्ग की ओर चली है
कानों में रस घोल रही आ
गुंजित हवा में काकली है
मिट रही अब धैर्य की 'सीमा'
मच रही दिल में खलबली है
- डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
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