Tuesday 9 July 2024

कहमुकरियाँ हिन्दी महीनों पर...

१-
आने से उसके आए बहार।
मौसम पे छा जाए निखार।
देख  उसे  हो  शीत  नपैत।
क्या सखि साजन ? ना सखि चैत।

२-
नया उछाह, नवजीवन लाता।
साथ सभी के घुलमिल जाता।
घटती कभी न उसकी साख।
क्या सखि साजन ? ना वैशाख।

३-
आग बबूला सदा वह रहता।
पारा दिनभर चढ़ा ही रहता।
गरम मिजाज   हठीला ठेठ।
क्या सखि साजन ? ना सखि जेठ।

४-
राहत  का  संदेशा  लाए।
अब्र सा तपते मन पर छाए।
संग लाए खुशियों की बाढ़।
क्या सखि साजन ? ना आषाढ़।

५-
तन-मन का  वह ताप मिटाए।
उस बिन अब तो रहा न जाए।
छुपा न जाने कहाँ मनभावन।
क्या सखि  साजन ? ना सखि सावन।

६-
नेह-समन्दर  खींच वह लाता।
उमड़-घुमड़ फिर बरसा जाता।
अता-पता कुछ ? तुम्हीं बता दो।
क्या सखि साजन ? ना सखि भादो।

७-
राहें मुश्किल   सुगम बनाए।
आ पपिहे की प्यास बुझाए।
शरद-चाँदनी    छिड़के द्वार।
क्या सखि साजन ? ना सखि क्वार।

८-
उत्सव कितने संग वो लाए।
घर-आँगन में   रौनक छाए।
मीठी लागे वाकी झिक-झिक।
क्या सखि साजन ? ना सखि कातिक।

९-
सूरत- सीरत    सबमें न्यारा।
माधव को भी है अति प्यारा।
नाम से उसके होती सिहरन।
क्या सखि साजन ? ना सखि अगहन।

१०-
थर-थर काँपे  माँगे प्रीत।
बड़ी अनूठी उसकी रीत।
जाता लिए बिना ना घूस।
क्या सखि साजन ? ना सखि पूस।

११-
संग लिए   आए मधुमास।
जगाए काम  बढ़ाए प्यास।
निपट निर्मोही मन का घाघ।
क्या सखि साजन ? ना सखि माघ।

१२-
सुखद नज़ारे  लेकर लाए।
रंग में अपने मुझे रंग जाए।
गुन में उसके छिपें सब अवगुन।
क्या सखि साजन ? ना सखि फागुन।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

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