Friday 28 July 2023

फितरत दुनिया की....

फितरत दुनिया की…

ये तो दुनिया की फितरत है,
अपना कहती फिर छलती है।
 मुँह पर करती मीठी बातें,
पर पीछे चालें चलती है।

किए बड़े थे उसने वादे।
मगर नहीं थे नेक इरादे।
झूठ खुला तो जाना, कैसे-
चतुराई रूप बदलती है।

मीठी बोली में विष-गोली।
नज़र बचाकर उसने घोली।
भाँप न पाया दिल ये मेरा,
इसमें मेरी क्या गलती है।

दिल पर जो छुपछुप घात करे।
छल से आहत ज़ज्बात करे।
वाकिफ़ रहे सदा इस सच से,
आह भी एक दिन फलती है।

जग में सूरज- चाँद-सितारे।
आते – जाते बारी – बारी।
दिन भी सदा न सबका रहता,
रात भी सभी की ढलती है।

कभी किसी की रातें लम्बी।
कभी किसी के दिन बढ़ जाते।
भाग बराबर मिलता सबको,
समता से दुनिया चलती है।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

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