Tuesday 10 September 2024

आज राधा अष्टमी पर श्री कृष्ण बल्लभा श्रीराधे जू को समर्पित मेरे द्वारा रचित कुछ दोहे...

रूप माधुरी मोहिनी,  हर वर्णन के पार।
श्री राधे-राधे जपो, खुले मुक्ति का द्वार।।

शक्ति स्वरूपा श्याम की, ब्रह्म स्वरूपा आप।
भक्ति करे जो आपकी, मिट जाएँ भव-ताप।।

राधन इच्छा का करे, श्री राधे का नाम।
राधे-राधे जप मना, आ जाएंगे श्याम।।

राधे-राधे जप मना, चाहे यदि घनश्याम।
दौड़े आएंगे प्रभो ,   सुन राधा का नाम।।

राधा गोपी मोहना, रास रचाते नित्य।
अगजग को रसमय करें, अद्भुत उनके कृत्य।।

राधा है संजीवनी,     भरती सबमें प्राण।
बिन राधा संसार से, मिले नहीं परित्राण।।

हाथ जोड़ कबसे सतत, करूँ विनय मदिराक्ष।
मिलें मुझे रासेश्वरी,      अब तो कृपा-कटाक्ष।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

फोटो गूगल से साभार

Thursday 5 September 2024

रास्ता तुमने दिखाया...

जब थका तन हारता मन,
हौसला तब-तब बढ़ाया।
लक्ष्य पर नित बढ़ रही मैं,
रास्ता तुमने दिखाया।

बेबसी के उस प्रहर में,
ढा रहा था जग कहर जब।
सुर सधी आवाज भी ये,
हो रही थी बेअसर जब।
हर तरफ वीरानगी थी,
घिर रही थी दुख-भँवर में,
तब बढ़ाकर हाथ अपना,
पार तुमने ही लगाया।

एक कोने में पड़ी थी,
थे सभी सुख-साज दुर्लभ।
पंख फैला कल्पना के,
छू रही हूँ आज मैं नभ।
जब जहाँ भी मैं रही हूँ,
तुम सदा मन में रहे हो।
मैं भ्रमित थी राह में जब,
बढ़ सुपथ तुमने सुझाया।

क्या गलत है क्या सही है,
कुछ नहीं मुझको पता था।
कौन था बस एक तू, जो-
हाल मेरा जानता था।
जो मिला तुमसे मिला है,
सच कहूँ ये आज खुलकर,
सब तुम्हारी ही बदौलत,
आज कुछ जो कर दिखाया।

लक्ष्य पर नित बढ़ रही मैं,
रास्ता तुमने दिखाया।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)'गत आगत अनागत' से


Tuesday 3 September 2024

पशु-पक्षी बेघर हुए...( वन्य जीव संरक्षण दिवस पर )

छाया दी जिस वृक्ष ने,    पोसा देकर अन्न।
आज उसी को काटता, मानव बड़ा कृतघ्न।।

चिड़िया बैठी सोच में, तिनका-तिनका जोड़।
रचूँ नीड़  किस  वृक्ष पर, कब मानव दे तोड़।।

बंदर बेघर हो रहे,  छिने ठिकाने-ठौर।
जाएँ तो जाएँ कहाँ, कौन करे ये गौर।।

छीन रहे हम स्वार्थ-वश, वन्य-जीव आवास।
पशु-पक्षी बेघर हुए,           झेल रहे संत्रास।।

नीड़-माँद उजड़े सभी, बिखरे तिनका-पात।
खग-मृग मन-मन कोसते, क्या मानव की जात।।

पादप सत के रोपिए,  पनपे अंतस - बोध।
अहं भाव को रोकिए, बस इतना अनुरोध।।

मिले फसल मनभावनी,        बिरबे ऐसे रोप।
फल आशा-अनुरूप हो, झलके आनन ओप।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
'किंजल्किनी' से
फोटो गूगल से साभार

Sunday 1 September 2024

मानते हो राम को तो...

मानते हो राम को तो....

मानते हो राम को तो,
मानना होगा तुम्हें ये।
हर अहं से दूर थे वे,
जानना होगा तुम्हें ये।

राम का मंदिर बनाकर,
किस कदर मगरूर थे तुम।
स्वार्थ के ही थे निकटतर,
राम से तो दूर थे तुम।
राम रमते रोम में हैं,
जानना होगा तुम्हें ये।

राम अब सेवक हमारे,
जो कहेंगे वो करेंगे।
चूर मद में सोचते तुम,
अब विजय हम ही वरेंगे।
सोच थी कितनी अपावन,
मानना होगा तुम्हें ये।

दिग्भ्रमित रावण हुआ था,
शिव सहित कैलाश लाकर।
अब बनूँगा मैं त्रिलोकी,
शंभु को मस्का लगाकर।
दंभ ले डूबा वही बस,
जानना होगा तुम्हें ये।

राम का तब राज्य होगा,
गुण वरो जो राम से तुम।
दुष्ट कितना कुछ कहे पर,
मौन संयम साध लो तुम।
आचरण बोलें तुम्हारे,
ठानना होगा तुम्हें ये।

द्वेष सब मन से निकालो।
राममय निज को बना लो।
नीति के पथ पर चलो नित,
राजनीति' ये बना लो।
सार क्या संसार में है,
छानना होगा तुम्हें ये।

शक्ति उसके उर समाती,
सत्य के पथ पर चले जो।
लाभ क्या उस बाहुबल का,
निर्बलों को ही छले जो।
राम क्या थे राज्य के हित,
जानना होगा तुम्हें ये।

थी परीक्षा ये तुम्हारी,
भूल सब अपनी सुधारो।
प्रभु कृपा से पास हो,अब
डूबती नैया उबारो।
राम के आदर्श क्या थे,
जानना होगा तुम्हें ये।

मानते हो राम को तो,
मानना होगा तुम्हें ये।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

05 जून, 2024