Monday 22 July 2024

शिव सुंदर शिव सत्य


शिव सुखकर शिव शोकहर, शिव सुंदर शिव सत्य।
शिव से सोहें साज सब, शिव संसृति सातत्य।।

शिव-सेवा संलग्न सी, शिवमय शिवा शिवाय।
सुख-साधन सब शोक सम, शंकर सुभग सिवाय।।

आदिगुरू शिव को कहें, उपजा शिव से ज्ञान।
शिव से जीवन-जोत है, शिव से ही कल्यान।।

शिव बन शिव को पूजिए, रखिए मन-संतोष।
कृपा-मेघ बरसें सघन, भरे रिक्त मन-कोष।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद



फोटोज गूगल से साभार

Thursday 11 July 2024

हर खुशी पाकर रहूँगी...

हर खुशी पाकर रहूँगी...

हर खुशी पाकर रहूँगी।
विश्व में  छाकर रहूँगी।

आसमां को   चूम लूँगी।
भर  खुशी में झूम लूँगी।
हैं अगर  छोटी  लकीरें,
कर जतन से  जूम लूँगी।

लिंगभेदी  मैं  पुराने,
गढ़ सभी ढाकर रहूँगी।

स्वार्थहित जो बात करते।
पीठ पीछे घात करते।
रात  की  रंगीनियों  में,
दिन किसी के रात करते।

कर्म काले उन सभी के,
सामने लाकर रहूँगी।

हौसला मिलता रहे बस।
मन-कमल खिलता रहे बस।
कामयाबी का सदा ये,
सिलसिला चलता रहे बस।

गूँज जिसकी हो गगन तक,
गीत वो गाकर रहूँगी।

साथ सबकी प्रीत लूँगी।
हर समर मैं जीत लूँगी।
जो हमें कमतर बताए,
मैं बदल  वो  रीत दूँगी।

जोश नर का चूर कर सब,
होश में लाकर रहूँगी।

गर्दिशों में गुम रहूँ क्यों ?
पाप नर के मैं सहूँ क्यों?
दे  डुबा  अस्तित्व  मेरा,
उस नदी में मैं बहूँ क्यों ?

थीं कभी वर्जित हमें जो,
उन गली जाकर रहूँगी।

हक सभी पाकर रहूँगी।
सत्य   मनवाकर रहूँगी।

विश्व में छाकर रहूँगी।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ. प्र.)
"दीपशिखा" में प्रकाशित

Tuesday 9 July 2024

कहमुकरियाँ हिन्दी महीनों पर...

१-
आने से उसके आए बहार।
मौसम पे छा जाए निखार।
देख  उसे  हो  शीत  नपैत।
क्या सखि साजन ? ना सखि चैत।

२-
नया उछाह, नवजीवन लाता।
साथ सभी के घुलमिल जाता।
घटती कभी न उसकी साख।
क्या सखि साजन ? ना वैशाख।

३-
आग बबूला सदा वह रहता।
पारा दिनभर चढ़ा ही रहता।
गरम मिजाज   हठीला ठेठ।
क्या सखि साजन ? ना सखि जेठ।

४-
राहत  का  संदेशा  लाए।
अब्र सा तपते मन पर छाए।
संग लाए खुशियों की बाढ़।
क्या सखि साजन ? ना आषाढ़।

५-
तन-मन का  वह ताप मिटाए।
उस बिन अब तो रहा न जाए।
छुपा न जाने कहाँ मनभावन।
क्या सखि  साजन ? ना सखि सावन।

६-
नेह-समन्दर  खींच वह लाता।
उमड़-घुमड़ फिर बरसा जाता।
अता-पता कुछ ? तुम्हीं बता दो।
क्या सखि साजन ? ना सखि भादो।

७-
राहें मुश्किल   सुगम बनाए।
आ पपिहे की प्यास बुझाए।
शरद-चाँदनी    छिड़के द्वार।
क्या सखि साजन ? ना सखि क्वार।

८-
उत्सव कितने संग वो लाए।
घर-आँगन में   रौनक छाए।
मीठी लागे वाकी झिक-झिक।
क्या सखि साजन ? ना सखि कातिक।

९-
सूरत- सीरत    सबमें न्यारा।
माधव को भी है अति प्यारा।
नाम से उसके होती सिहरन।
क्या सखि साजन ? ना सखि अगहन।

१०-
थर-थर काँपे  माँगे प्रीत।
बड़ी अनूठी उसकी रीत।
जाता लिए बिना ना घूस।
क्या सखि साजन ? ना सखि पूस।

११-
संग लिए   आए मधुमास।
जगाए काम  बढ़ाए प्यास।
निपट निर्मोही मन का घाघ।
क्या सखि साजन ? ना सखि माघ।

१२-
सुखद नज़ारे  लेकर लाए।
रंग में अपने मुझे रंग जाए।
गुन में उसके छिपें सब अवगुन।
क्या सखि साजन ? ना सखि फागुन।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Sunday 7 July 2024

कुछ दोहे...

रहता जल में ज्यों कमल, रहे जगत में राम।
माया से निर्लिप्त थे,     मायापति सुखधाम।।१।।

काँजी की इक बूँद से,     फटते नहीं समुद्र।
मान न घटता राम का, कह लें कुछ भी क्षुद्र।।२।।

अद्भुत संयम शील है,    नहीं आप सा अन्य।
चरण-आचरण आपके, करें जगत को धन्य।।३।।

मिले चरण-रज आपकी, धन्य बना लूँ प्राण।
जग के माया-जाल से, मिले तनिक तो त्राण।।४।।

वह भी उतना दुष्ट है,    करे दुष्ट का पक्ष।
अनुयायी अन्याय का, अन्यायी समकक्ष।।५।।

बाधक होते लक्ष्य में, कायरता- अविवेक।
सोच-समझ जो डग भरे, पाता मंजिल नेक।।६।।

सहिष्णुता-संयम-दया,    सेवा-प्रेम-विवेक।
करुणा-नय-औदार्य-सत्, गढ़ें धर्मपथ नेक।।७।।

बनते काम बिगाड़ती,  देती मन को खीज।
ऐन वक्त पर ऐंठती, किस्मत भी क्या चीज।।८।।

सबकी तुलना में जिसे, समझा सबसे खास।
घात लगा विश्वास में,      सौंप गया  संत्रास।।९।।

कोख हरी भू की करे, डाल बीज में जान।
परहित जीवन वार दे, घन सा कौन महान ?।।१०।

उजड़े उपवन-क्यारियाँ, बिगड़ा प्राकृत रूप।
पोषक भी शोषक हुए,   अम्ल उगलती धूप।।११।।

धूलि-कणों से बिद्ध हो, पौन सोचती मौन।
गंगा भी मैली जहाँ,     धुला दूध का कौन ?१२।।

अपने पर आयी बला,  रहे और पर डाल।
चूल्हे पर पर के चढ़ा, गला रहे निज दाल।।१३।।

समझ हमें सब आ गया, कितने हो तुम घाघ।
अगन भरे हो जेठ से,   बस दिखने के माघ।।१४।।

शिक्षा को समझो नहीं, दाल-भात का कौर।
चने चबाए लौह के,      मिले उसे ही ठौर।।१५।।

रोजगार सबको मिले,  रहे आत्म सम्मान।
बनें आत्मनिर्भर सभी, हो अपनी पहचान।।१६।।

प्रो. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )