Friday 9 February 2024

रूप मधुर ऋतुराज का...

नया-नया आगाज है,  नया-नया उल्लास।
भाव-भंगिमा ले नवल, आया लो मधुमास।।१।।

ऋतु बसंत का आगमन, मादक बहे बयार।
तन-मन तंद्रिल कर रहा, मस्ती भरा खुमार।।२।।

गदराया भू का बदन, झलके मुख पर लाज।
यौवन-मद में झूमता,  कामसखा ऋतुराज।।३।।

खिली कली कचनार की, दहका फूल पलास।
नव लतिकाएँ बाँचतीं, ऋत्विक नव्य हुलास।।४।।

खिली-खिली फुलवारियाँ, अलिदल की गुंजार।
चंपा-जूही-मालती,  किंशुक-हरसिंगार।।५।।

अधरों पर शतदल खिले, मुख पर खिले गुलाब।
मौसम है मधुमास का,   अंग-अंग पर आब।।६।।

रूप मधुर ऋतुराज का, अंग माधवी  - गंध।
लेखक लेकर लेखनी, लिखते ललित निबंध।।७।।

साथी मैन बसंत का, लगा रहा मन-घात।
कोयल काली कूक कर, करे कुठाराघात।।८।।

रुत मतवाली आ गयी, साजन हैं परदेश।
प्रोषितपतिका नार का,  कौन सँवारे वेश ।।९।।

चाँदी की चादर तनी, हुआ शीत का अंत।
टेसू-ढाक-पलाश ले,    खेले फाग बसंत।।१०।।

अंत सभी का हो यहाँ, कुछ भी नहीं अनंत।
पतझड़ भी टिकता नहीं,  रहे न सदा बसंत।।११।।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

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