Monday 26 February 2024

खुश रहो तुम सदा...

खुश रहो तुम सदा, खिलखिलाते रहो।

गम मिलें भी अगर,  मुस्कुराते रहो।

बेकली मन बसी, क्या करें जी रहे।
रोज ही सब्र का,    घूँट हम पी रहे।
खो न दें होश भी, क्रोध-आवेश में,
जो मिले वो सही,  शुभ मनाते रहो।
गम मिलें भी अगर,  मुस्कुराते रहो।

बेवजह कुछ नहीं, वस्तु संसार में।
तुच्छ का भी लगे, मोल बाजार में।
वक्त के चक्र से, कब किसे क्या मिले,
कर्म से भाग्य नित, आजमाते रहो।
गम मिलें भी अगर,  मुस्कुराते रहो।

सूर्य भी दे रहा,  सीख ये झुक तुम्हें।
चाँद-तारे कहें, ठिठक रुक-रुक तुम्हें।
पा अगर लो कभी, स्वर्ग सी उच्चता,
भूमिजों के सदा,  काम आते रहो।
गम मिलें भी अगर, मुस्कुराते रहो।

मनुज-तन जो मिला, पुण्य से कम नहीं।
सुख जगत के सभी,  ना मिलें गम नहीं।
परम की खोज में, सौंप कर जान-तन,
बीहड़ों में सदा,  गुल खिलाते रहो।
गम मिलें भी अगर, मुस्कुराते रहो।

फल सरस हो मधुर, बीज वो बो चलें।
सूर्य फिर जी उठे,     रात से हम ढलें।
वृक्ष-नद-मेघ सम, नित परार्थ में लगे,
स्वयं को होम कर,   हर्ष पाते रहो।
गम मिलें भी अगर, मुस्कुराते रहो।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
'मनके मेरे मन के' से


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