अद्भुत माँ की शक्तियाँ, अद्भुत माँ का रूप।
दर्शन दो माँ भक्त को, धारे रूप अनूप।।१।।
वर दो माँ पद्मासने, टूटे हर जंजीर।
भव-बंधन से मुक्त कर, हर लो मन की पीर।।२।।
नौ दिन ये नवरात्र के, मातृ शक्ति के नाम।
मातृ भक्ति से हों सदा, सिद्ध सभी के काम।।३।।
पूजो माता के चरन, ध्या लो उन्नत भाल।
वरद हस्त माँ का उठे, हर ले दुख तत्काल।।४।।
रिपुओं से रक्षा करे, बने भक्त की ढाल।
बरसे जब माँ की कृपा, कर दे मालामाल।।५।।
कलुष वृत्ति मन की हरें, माता के नव रूप।
भक्ति-शक्ति के जानिए, मूर्तिमंत स्वरूप।।६।।
नारी का आदर करें, रख मन में सद्भाव।
कारक बने विकास का, नर-नारी समभाव।।७।।
जगत-जननी माँ अंबे, ले मेरी भी खैर।
मैं भी तेरा अंश हूँ, समझ न मुझको गैर।।८।।
मधुर-भाव चुन चाव से, सजा रही दरबार।
मेरे घर भी अंबिके, आना अबकी बार।।९।।
पलकों पे सपने लिए, लाँघे जब दहलीज।
बिटिया की माँ का हृदय, पल-पल उठे पसीज।।१०।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
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