Wednesday 5 February 2020

मेरी तीन रचनाएँ...


१- गुनो सार जीवन का...

इधर-उधर  मत  डोलो
मन  की  आँखें  खोलो

तोड़ो न दिल किसी का
असत्य  कभी  न बोलो

रखकर  कर्म-तुला  पर
सुख-दुख  दोनों  तोलो

प्रायश्चित   के  जल  से
मल  पापों  का धो  लो

लौट  अतीत  की  ओर
बिखरे  मनके   पो  लो

फैले   बेल   खुशी   की
बीज  नेह   के  बो   लो

हो  शरीक  पर-गम   में
पलभर पलक भिगो लो

करो  न  बैर  किसी  से
सबके  अपने   हो   लो

बोलो    अमृत     वाणी
गरल  न  मन  में  घोलो

गुनो  सार   जीवन   का
यादें   मधुर   सँजो   लो

मूंद  लो   थकी   पलकें
नींद  सुकूं  की  सो  लो

- डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)

२- वक्त-वक्त की बात ....

कल वक्त हम पर अनुरक्त हुआ
पल आज वो गुजरा  वक्त हुआ

आज  वो   हमसे  दूर  बहुत  है
दिल जिसपे कभी आसक्त हुआ

वक्त-वक्त की है बात, कहें क्या
कभी नरम कभी तो सख्त हुआ

दम से जिसके  हसीं थी दुनिया
वही  अब  हमसे  विरक्त  हुआ

जब-जब भी उससे नज़र मिली
मुखड़ा  लजाया  आरक्त  हुआ

उफनता  सागर  जज़्बातों   का
शब्दों में  कहाँ अभिव्यक्त हुआ

साथ छोड़ चले  जब अपने  ही 
भारी  पलड़ा भी  अशक्त हुआ

शीशा ए दिल का  हाल न पूछो
कितने हिस्सों  में  विभक्त हुआ

सुकून  कहाँ  मन पाए  उसका
जो अपनों  से  परित्यक्त  हुआ

चल निकलीं तिकड़में जिसकी
वही सब पर हावी सशक्त हुआ

साथ जिसका दिया किस्मत ने
जमाना  उसी  का  भक्त  हुआ

हुई  विलीन असीम  में  'सीमा'
अंश  अंशी   से  संपृक्त   हुआ

- डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)

३- हर लो हरि-हर...

हर लो हरि-हर, हर गम मेरा !
लगा लिया अब मैंने प्रभुवर,
तुम्हारे चरन-कमलों में डेरा !
हर लो हरि-हर, हर गम मेरा !

तेरी जगती में जब सब सोते,
बस एक अकेली जगती हूँ मैं !
नाम की तेरे  दे कर दुहाई,
प्राणों को अपने ठगती हूँ मैं !
      मन में मूरत बसी है तेरी,
      जिह्वा पर बस नाम है तेरा !
हर लो हरि-हर, हर गम मेरा !

मैंने सुना है भक्त पुकारे,
तब तुम दौड़े आते हो !
अपना हर एक काम जरूरी
उस पल छोड़े आते हो !
      अपने प्रन की लाज रख लो,
      डालो इधर भी फेरा !
हर लो हरि-हर, हर गम मेरा !

जाना जब से, अंश हूँ तेरा
खोज में तेरी, हुई दीवानी ।
नाता जबसे जुड़ा है तुमसे
जग से मैं सारे, हुई बेगानी ।
      अज्ञान-तिमिर हर लो मेरा,
      कर दो अब सुखद सवेरा ।
हर लो हरि-हर, हर गम मेरा !

खुद से जुदा कर मुझको तुमने
भेज दिया संसार में ।
कैसे तुम तक अब मैं आऊँ
भटक रही मझधार में ।
       कोई सुगम सी राह सुझा दो
        मुझे महा विपद् ने घेरा ।
हर लो हरि-हर, हर गम मेरा !

-डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)

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