मन प्यासा
तन लातूर हुआ
स्नेह- जल
कोसों दूर हुआ !
आस रही ना
कोई मन में
हर सपना
चकनाचूर हुआ !
मिलता कैसे
उससे ज्यादा
किस्मत को जितना
मंजूर हुआ !
हर ख्वाब
रिसता आँखों से
कैसा बदरंग
औ बेनूर हुआ !
रहम न आया
जरा भी मुझ पर
क्यों नसीबा
इतना क्रूर हुआ !
मस्त हैं सब
अपने- अपने में
कैसा जग का
दस्तूर हुआ !
अपने सुख में
भूला पर को
क्यों कोई इतना
मगरूर हुआ !
~ सीमा
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