धन्य वसुदेव-देवकी, धन्य जसोदा-नंद।
उतरा आँगन आपके, पूर्ण कलाधर चंद।।
एक वंश - परिवार में, हुए देवकी - कंस।
एक उदर जनमे हरी, एक उदर विध्वंस।। © सीमा
खोदते थे नित कुआँ जो,
आज प्यासे मर गए वे।
सौंप जग को पीर अपनी,
दर्द से हर तर गए वे।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
लिए शंभु की चाह में, जन्म एक सौ आठ।
जपें शिवा शिव नाम बस, भूलीं सारे ठाठ।।
चाह घनी मन में बसी, पाना है निज प्रेय।
भूलीं सारे भोग माँ, याद रहा बस ध्येय।।
शिव-आराधन लीन हो, त्यागे सारे भोग।
बिल्व पत्र के बल किए, सिद्ध साधना योग।।
निराहार निर्जल शिवा, शिवमय सुबहो-शाम।
त्याग पर्ण तन धारतीं, पड़ा अपर्णा नाम।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
"किंजल्किनी" से
बड़े-बड़े प्रबुद्ध यहाँ, देखे आत्म विमुग्ध।
सार न जाने ज्ञान का, कहते खुद को बुद्ध।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद