जीवन में रस घोलती, भरती सबमें जान।
घर की चौखट देहरी, बिन बेटी सुनसान।।
घर की रौनक बेटियाँ, खुशियों का पर्याय।
बूढ़ी माँ कैसे जिए, बिन बेटी असहाय।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
जीवन में रस घोलती, भरती सबमें जान।
घर की चौखट देहरी, बिन बेटी सुनसान।।
घर की रौनक बेटियाँ, खुशियों का पर्याय।
बूढ़ी माँ कैसे जिए, बिन बेटी असहाय।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
था नहीं आसान मुझको,
लिख रही जो गीत लिखना।
सीख पायी हूँ तुम्ही से,
हार पर भी जीत लिखना।
'ये उदासी के अँधेरे,
कुछ पलों में दूर होंगे।
जो करें अपमान तेरा,
मान उनके चूर होंगे।'
थाम कर तुमने सिखाया,
युद्ध को संगीत लिखना।
'खामियाँ हैं हर किसी में,
कौन है संपूर्ण जग में।'
तुम सदा ही सीख देते,
क्या रखा है दुश्मनी में।
थे तुम्ही जिसने सिखाया,
शत्रु को भी मीत लिखना।
© सीमा अग्रवाल
"गीत सौंधे जिंदगी के" से
गुरु जम्भेश्वर राज्य विश्वविद्यालय, मुरादाबाद के लिए रचित कुलगीत...
सर्वधर्म समभाव समन्वित, सुगठित सहज सुकाय।
सुर साहित्य संगीत संस्कृति, समरसता समवाय।
महाग्रंथ में इस मंडल के, जुड़ा नया अध्याय।
विश्वविद्यालय गुरु जम्भेश्वर, नवयुग का पर्याय।
उर्वर धरा है ज्ञान की ये, गढ़े सुघड़ व्यक्तित्व।
उखाड़ न पाएँ आँधियाँ भी, सुदृढ़ तने अस्तित्व।
अड़ें शक्तियाँ अगर विरोधी, करे उन्हें निरुपाय।
विश्वविद्यालय गुरु जम्भेश्वर, नवयुग का पर्याय।
शुद्ध चेतना जाम्भोजी की, पराशक्ति का धाम।
बसा राम गंगा के तट पर, पीतल नगरी नाम।
बैर-द्वेष से परे जहाँ सब, देते नित निज दाय।
विश्वविद्यालय गुरु जम्भेश्वर, नवयुग का पर्याय।
प्रगति-पंथ पर बढ़े चलें हम , लिए अडिग विश्वास।
आए मंजिल पास हमारे, चूमे भाल सहास।
दीप ज्ञान का जले चतुर्दिक, हर ले कलुष -कषाय।
विश्वविद्यालय गुरु जम्भेश्वर, नवयुग का पर्याय।
मिटें वृत्तियाँ सकल तामसी, आए स्वर्णिम भोर।
वेद-ऋचाएँ मुखरित दिशि-दिशि, गुंजित हों सब छोर।
सद् विचार हों नवाचार हों, सुखकर शुभ अभिप्राय।
विश्वविद्यालय गुरु जम्भेश्वर, नवयुग का पर्याय।
© प्रो. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
१५ जनवरी, 2025
खोदते थे नित कुआँ जो,
आज प्यासे मर गए वे।
सौंप जग को पीर अपनी,
दर्द से हर तर गए वे।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
लिए शंभु की चाह में, जन्म एक सौ आठ।
जपें शिवा शिव नाम बस, भूलीं सारे ठाठ।।
चाह घनी मन में बसी, पाना है निज प्रेय।
भूलीं सारे भोग माँ, याद रहा बस ध्येय।।
शिव-आराधन लीन हो, त्यागे सारे भोग।
बिल्व पत्र के बल किए, सिद्ध साधना योग।।
निराहार निर्जल शिवा, शिवमय सुबहो-शाम।
त्याग पर्ण तन धारतीं, पड़ा अपर्णा नाम।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
"किंजल्किनी" से
बड़े-बड़े प्रबुद्ध यहाँ, देखे आत्म विमुग्ध।
सार न जाने ज्ञान का, कहते खुद को बुद्ध।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद