Saturday, 16 August 2025

धन्य वसुदेव-देवकी...

धन्य वसुदेव-देवकी,  धन्य जसोदा-नंद।
उतरा आँगन आपके, पूर्ण कलाधर चंद।।

एक वंश - परिवार में, हुए देवकी - कंस।
एक उदर जनमे हरी, एक उदर विध्वंस।।      © सीमा
फोटोज गूगल से साभार 



Friday, 8 August 2025

धरती सिमटी रो रही...

धरती सिमटी रो रही,
अंबर भी बेचैन।
वक्त सिखाया और का,
लूट रहा सुख-चैन।

©सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Wednesday, 6 August 2025

आँख सभी की नम है...

ज्यादा है या कम है।
घेरे  सबको  गम है।

तनिक गौर से  देखो,
आँख सभी की नम है।

सुखी समझना पर को,
मन का महज वहम है।

झेल रहा दुख उतना,
जिसमें जितना दम है।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
"सजल संग्रह" से

Saturday, 2 August 2025

वे कभी जब बोलते हैं...

वे कभी जब बोलते हैं।
बस अनर्गल  बोलते हैं।

हैं प्रखर वक्ता शहर के।
गीत गाते  हर ब़हर के।
बोल सब उनकी जुबां पर,
भोर-संझा-दोपहर के।
आँख पर चश्मा चढ़ाए,
कुछ लिखा कुछ बोलते हैं।

सब गलत पर वो सही हैं।
जानते खुद कुछ नहीं हैं।
दोष मढ़ना, रोष करना,
आदतें उनकी रही हैं।
हर किसी की हैसियत वे,
रत्तियों में तोलते हैं।

वे कभी जब बोलते हैं।
बस अनर्गल  बोलते हैं।

सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Friday, 1 August 2025

बढ़ रहे हैं दुक्ख प्रतिपल...

बढ़ रहे हैं दुक्ख प्रतिपल,
किस तरह निस्तार होगा ?

सुध न कोई तन-बदन की,
बेखुदी में जी रही हूँ।
अटकलों को दुह रही बस,
आस-आसव पी रही हूँ।
कर खुदा पेशीनगोई,
क्या कभी उद्धार होगा ?

कब छँटेंगे मेघ गम के,
कब घटेगा घुप अँधेरा ?
कब किरण रवि की पड़ेगी,
कब धवल होगा सवेरा ?
तैरता जो नित नयन में,
क्या सपन साकार होगा ?

हो रही दोहरी कमर है,
किस तरह ये बोझ ढोऊँ ?
फिक्र में घुल रात रीते,
चैन से इक पल न सोऊँ।
छाँट दे कुछ भार मन का,
सच बहुत आभार होगा।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र )
"गीत सौंधे जिन्दगी के" से

Thursday, 31 July 2025

साँझ-सकारे कर ले मनवा...

साँझ-सकारे कर ले मनवा,
राम-नाम  का  जाप।
मिट जाएंगे राम-नाम से,
भव-भौतिक सब ताप।

राम शिरोमणि आदर्शों के,
मर्यादा के धाम।
रूप-रंग में सम्मुख जिनके,
फीका पड़ता काम।
कलयुग में भी त्रेतायुग सी,
राम-नाम की छाप।

दर्शन करने भव्य रूप के,
चलो अयोध्या धाम।
लाभ नयन ये पा जाएंगे,
बिन खरचे कुछ दाम।
पावन सरयू में डुबकी ले,
धुल जाएंगे पाप।

राम सरिस बस राम अकेले,
नहीं दूसरा नाम।
फेरूँ मनके राम-नाम के,
मैं तो सुबहो-शाम।
कौन नहीं जो जाने जग में,
राम-नाम परताप।

राग-द्वेष से मुक्त सदा ही,
धीर-वीर-गंभीर।
अभय दे रहे धारे कर में,
प्रेम-दया के तीर।
परिणत होते वरदानों में,
चरण-धूलि से शाप।

राम रमणते रोम-रोम में,
राम आदि-अवसान।
राम-नाम की महिमा न्यारी,
करें संत गुणगान।
लौ न लगे यदि राम-नाम में,
पीछे हो अनुताप।

कर ले मनवा साँझ सकारे,
राम-नाम  का  जाप।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
"गीत सौंधे जिंदगी के" से

याद हमें आता रहरह कर...

याद हमें आता रह-रह कर,
अपना वही अतीत।
मधुर स्मृतियों में खो उसकी,
तिरें अधर पर गीत।

सभी पड़ोसी लगते अपने,
चाचा ताऊ बुआ।
आशीष दिया करते थे सब,
फलती सबकी दुआ।
मधुर संबंधों की फिर वही,
धारा बहे पुनीत।

गली मुहल्ले सब थे अपने,
खेले अनगिन खेल।
सुख की उन प्यारी सुधियों का,
कहाँ किसी से मेल।
नहीं द्वेष आता था मन में,
हार मिले या जीत।

आस-पास होते विद्यालय,
जाते हिलमिल साथ।
लेते थे आशीष बड़ों का,
झुका सभी को माथ।
काश पुनः दुहराएँ मिल सब,
वही पुरानी रीत।

छत से छत थीं जुड़ी सभी की,
मन से मन के तार।
चाँद-चाँदनी तारे जगमग,
लगते हीरक हार।
सधें वही सुर-ताल-लय फिर,
बहे वही संगीत।

वर्तमान की चकाचौंध से,
सिर बहुत चकराए।
खेल रहे जो खेल सभी अब,
जरा समझ न आए।
नहीं कहीं अब पड़े दिखाई,
आपस की वह प्रीत।

याद हमें आता रह-रह कर,
अपना वही अतीत।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
" गीत सौंधे जिंदगी के" से

Wednesday, 30 July 2025

आज प्यासे मर गये वे...

खोदते थे नित कुआँ जो,
आज प्यासे मर गए वे।
सौंप जग को पीर अपनी,
दर्द से हर    तर गए वे।

© सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद


Friday, 25 July 2025

जीवन भर जिसको गम ढोना...

जीवन-भर जिसको गम ढोना।
उसका होना भी    क्या होना।

करना हँसकर काम सभी पर,
लिखा  भाग्य में  केवल  रोना।

आँसू-चिंता-गम जग भर के,
यही ओढ़नी,   यही बिछोना।

मान नहीं जिसमें मुखिया का,
उस घर का होना क्या होना।

कंकड़ छिटके, गढ़े पाँव में,
झाड़ा जब यादों का कोना।

झाँको-देखो  छूकर भीतर,
अश्कों से तर है हर कोना।

किस्मत  मेरी  रचने  वाले,
बीज न ऐसा फिर तू बोना।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
"सजल संग्रह" से

Thursday, 24 July 2025

कैसे करूँ निबाह...

जग-शाला में भेज कर, शिशु अपना नादान।
खोज-खबर फिर ली नहीं, भूला उसका ध्यान।।

मैं तेरी संतान प्रभु,   तुझसे निर्मित काय।
कैसे अब तुझसे मिलूँ, तू ही सुझा उपाय।।

क्या देखा जो कर दिया, जग से मेरा ब्याह ?
पग-पग लानत ठोकरें,   कैसे करूँ निबाह ?

अपने तन से काढ़कर,      भेज दिया परदेश।
देख कभी तो आ मुझे, पग-पग कितने क्लेश।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Tuesday, 22 July 2025

मुँह क्या लगना उन नंगों के...

सेंध लगा औरों के घर में घर जो अपना भरते हैं।
बाज न आते नक़बज़नी से रोज डकैती करते हैं।
मुँह क्या लगना उन नंगों के क्या ही उनका बिगड़ेगा।
अपना क्या उन पर चारा भी जो गैरों का चरते हैं।

सेंध लगाकर पर के घर में उड़ा रहे जो पर का माल।
परजीवी ऐसे जीवों का प्रभु ही जाने क्या हो हाल।
हाय न लेना कभी किसी की हमने तो यही सीखा है।
नजर गड़ाने वाला पर पर जीवन भर रहता कंगाल।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

शिवमय सुबहो शाम...

लिए शंभु की चाह में, जन्म एक सौ आठ।
जपें शिवा शिव नाम बस, भूलीं सारे ठाठ।।

चाह घनी मन में बसी, पाना है निज प्रेय।
भूलीं सारे भोग माँ,  याद रहा बस ध्येय।।

शिव-आराधन लीन हो,     त्यागे सारे भोग।
बिल्व पत्र के बल किए, सिद्ध साधना योग।।

निराहार निर्जल शिवा, शिवमय सुबहो-शाम।
त्याग पर्ण तन धारतीं,      पड़ा अपर्णा नाम।।

© सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद ( उ.प्र. )

"किंजल्किनी" से


फोटो गूगल से साभार

ढूँढे से भी ना मिले...

ढूँढे से भी ना मिले,   खोया दिल का चैन।
आस लगाए खोखली, तड़प रहा दिन-रैन।।

कनियाँ सुख की बीनते, गड़ी पाँव में कील
हँसते लमहे हो गए,         आँसू में तब्दील।।

बात बदलते थे सभी,  बदल रही अब वात।
सता रहा क्यों आजकल, भय कोई अज्ञात।।

लील रही सुख चैन सब,   ये तूफानी रात।
कुछ' समझ आता नहीं, क्या होंगे हालात।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद.( उ.प्र. )
"किंजल्किनी" से

Monday, 21 July 2025

दिन कहाँ अब वे प्रणय के...

दिन कहाँ अब वे प्रणय के।
उस मधुर अभिसार लय के।
रूपसी सी चाँदनी या,
चाँद के वर्तुल वलय के।

भर अहं में कर रहे सब,
एक दूजे से किनारे।
जोड़ नाजुक काँच से हा !
तोड़ देते बिन बिचारे।
अब कहाँ संयोग बनते,
प्रेम में होते विलय के।

स्वार्थ में नित लिप्त दुनिया,
सिर्फ अपना काम साधे।
हिल रही बुनियाद घर की,
हो रहे परिवार आधे।
अंत समझो सृष्टि का अब,
बन रहे बानक प्रलय के।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
"गीत सौंधे जिन्दगी के" से

चाँद छुप-छुप झाँकता है...

रोज खिड़की में उझककर,
चाँद छुप-छुप झाँकता है।
कौन जाने रात भर ये,
रूप किसका आँकता है।

देख ले इसकी झलक तो,
तम सघन भी जगमगाए।
चल रहा धुन में अकेला,
गम कहीं अपना छुपाए।
रात की काली चुनर में,
गोट-तारे टाँकता है।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
"गीत सौंधे जिंदगी के" से


क्या मिलेगा इस विजय से...

कर्म खोटे क्या फलेंगे,
क्या मिलेगा इस विजय से ?
इस तरह जो लूट सबको,
भर रहे झोली अनय से।

छीन लो सुख-साज सारे,
क्या मुकद्दर छीन लोगे ?
भाग्य में जिसके लिखा जो,
मान-धन क्या बीन लोगे ?

देख पाओ सत-असत सब,
कर सको जग की भलाई।
मेट पाओ दर्द जग का,
पा गए जब वो उँचाई।

आसमां भी झुक रहा ज्यों,
नत रहो तुम भी विनय से।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
"गीत सौंधे जिंदगी के" से


Sunday, 20 July 2025

20 जुलाई, अंतर्राष्ट्रीय शतरंज दिवस पर सभी शतरंज खिलाड़ियों को मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ...

बचपन से साथी रहे,      लूडो कैरम ताश।
क्या कहने शतरंज के, जकड़े रखता पाश।।

चिंताएँ सब ताख रख, खेलें चल शतरंज।
गिज़ा मिले कुछ बुद्धि को, मिट जाएँ सब रंज।

दौड़ी फिरती हर तरफ, सीधी-तिरछी चाल।
रानी है शतरंज की,  कब क्या करे कमाल।।

सोच समझ आगे बढ़े, जिंदा करे वजीर।
अदना सा प्यादा अहा, रचता नयी नजीर।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
फोटोज गूगल से साभार

Saturday, 12 July 2025

कैसी हो कल भोर...

पुष्प-कली-पल्लव सभी, रहें सदा गुलज़ार।
हम तो अब हैं बागवां,       जाती हुई बहार।।

धीरे-धीरे बढ़ रहे,      जाते कल की ओर।
बतलाएगा कौन अब, कैसी हो कल भोर।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

Tuesday, 8 July 2025

है इसी में जीत अपनी...

चाहता मन पी तमस सब,
बाँट दूँ घर-घर उजाले।
नीर है इतना दृगों में,
प्यास जग अपनी बुझा ले।
है इसी में जीत अपनी,
भूति वैभव हार जाना।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Friday, 20 June 2025

योग दिवस...

आज सभी संकल्प लें, रोज करेंगे योग।
चित्तवृत्तियाँ शुद्ध रख,    दूर करेंगे रोग।।

स्वस्थ निरोगी  तन रहे,   योग  बने  आधार।
व्याधि न कोई छू सके, सुखमय  हो  संसार।।

वशीकृत चित्तवृत्तियाँ,     बनतीं साधन योग।
नियमन यदि इनका करें, तन-मन रहें निरोग।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Tuesday, 17 June 2025

तुम अनूठी सी छटा हो...

सौम्यता शालीनता की,
तुम अनोखी सी छटा हो।
जो निखर उठती बरस कर,
वो घिरी घन की घटा हो।

मुख कमल उत्फुल्ल हर पल,
गम-शिकन दिखती नहीं है।
ये सुघड़ता ये निपुणता,
हर कहीं मिलती नहीं है।
गूढ़ अतिशय पावनी ज्यों,
शंभु की जलमय जटा हो।

घुप तमस में चाँदनी सी।
बादलों में दामिनी सी।
शांति का आभास देती,
रात तुम वो कासनी सी।
केश काले लग रहे ज्यों,
घिर रही काली घटा हो।

© सीमा

Monday, 16 June 2025

हरहराता मन नदी सा...

हरहराता मन नदी सा,
गम हिमालय से अटल हैं।
पर लगे हैं चाहतों के,
तक रहीं नभ का पटल हैं।

© सीमा अग्रवाल

Wednesday, 11 June 2025

ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा...

भभका सूरज जेठ में,   उगले रहरह आग।
वट-पूनम की चाँदनी, छिटक रही अनुराग।।

दिवस भभकते आग से,   झुलसे भू की देह।
मधुर-मधुर मृदु चाँदनी, ज्यों शीतल अवलेह।।

जन्म कबीरा- वेद का, सरयू का प्राकट्य।
अद्भुत पूनम जेठ की, अद्भुत ये वैशिष्ट्य।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
फोटो गूगल से साभार

Thursday, 5 June 2025

आज दिवस पर्यावरण...

वृक्षों की सेवा करो, मिलता पुन्य महान।
पालो पोसो जतन से, समझ इन्हें संतान।।

पीकर कार्बन का जहर, देते अमृत दान।
तरुवर जीवन के लिए, कुदरत का वरदान।।

अवशोषित कार्बन करें, घातक जहर समान।
प्राणवायु देकर हमें, देते जीवन दान।।

वृक्ष हमारे देवता, वृक्ष हमारे मित्र।
दान करें निस्वार्थ ये, रखते भाव पवित्र।।

वृक्ष हमारे देव हैं,           वृक्ष हमारे इष्ट।
शीत-घाम-तम झेलकर, देते हमें अभीष्ट।।

वृक्षों का रोपण करें, रहे धरा संपन्न।
हरियाली चहुँ ओर हो, बहुविध उपजे अन्न।।

रेत-रेत सब खेत हों, पृथ्वी बने मसान।
रोको कोई वृक्ष का,  अंधाधुंध कटान।।

प्रकृति माँ सी पूज्य है, रक्खो सदा सहेज।
हरी-भरी हँसती रहे,   खुशियों से लबरेज।।

पाला पोसा नर तुझे,    दिया सुलभ आहार।
अपने पालक वृक्ष पर, क्यों तू करे  प्रहार।।

वृक्षों पर सुन मनुज यदि, चलीं आरियाँ और।
धरती पर इक दिन तुझे, नही मिलेगा ठौर।।

छाया दी जिस वृक्ष ने, पोसा देकर अन्न।
आज उसी को काटता, मानव बड़ा कृतघ्न।।

जंगल-जंगल कट रहे, सूख रहे जल स्रोत।
लिप्सा बढ़ती जा रही, घटती जीवनजोत।।

शुद्ध रहे पर्यावरण, शुद्ध रहें जल - वायु।
काया शुद्ध निरोग हो, घटे न यूँ ही आयु।।

आज दिवस पर्यावरण, काम करें सब नेक।
आस-पास अपने सभी,    रोपें पौधा एक।।

मिले फसल मनभावनी,        बिरबे ऐसे रोप।
फल आशा-अनुरूप हो, झलके आनन ओप।।

वृक्षों का रोपण करो,  दो पोषण भरपूर।
आएगी वरना प्रलय, दिवस नहीं वह दूर।।

आओ हम सब आज से, खाएँ ये सौगंध।
जीवन भर निभाएंगे , प्रकृति-पुत्र संबंध।।

© सीमा अग्रवाल
दोहा संग्रह "किंजल्किनी" से

फोटो गूगल से साभार

Saturday, 31 May 2025

रहिए सदा सतर्क...

बात-बात पर हेकड़ी, बात-बात पर रार।
ऐसे जुल्मी जीव से,       पाएँ कैसे पार।।

बातें सज्जन सी करें, रक्खें मन में चोर।
ओछे-ओछे कर्म कर, होते हर्ष विभोर।।

अहित चाहना और का, उल्टी माला फेर।
कुत्सित ऐसी भावना,   पल में होती ढेर।।

नफरतजीवी जीव से, रहिए सदा सतर्क।
मीठा-मीठा बोलकर,   कर दे बेड़ा गर्क।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ. प्र. )

प्रातः स्मरणीय पुण्य श्लोका माँ अहिल्याबाई होल्कर के त्रिशताब्दी जन्म दिवस पर उन्हें शत-शत नमन 🙏🙏



जामखेड़ महाराष्ट्र में,     चौंडी नामक गाँव।
घर भर का साया बनी, वट पीपल की छाँव।

साधारण सा गाँव था, साधारण परिवार।
चरवाहे का काम था, जीवन का आधार।।

नाम पिता का मानको,   मात सुशीला नार।
हर मानक पर थीं खरी, शक्ति शील भंडार।।

बाबा सा की लाडली, आई की अनुहार।
छोटे-छोटे स्वप्न थे,     छोटा सा संसार।।

मुखड़ा उजला गोल ज्यों, चंदा की तस्वीर।
मन निर्मल पावन महा,      जैसे गंगा नीर।।

शिव की थीं आराधिका, भक्ति भाव अनन्य।
परहित में नित रत रहीं,    रहते ज्यों पर्जन्य।।

मन था निर्मल आइना,    नयना स्वप्न हजार।
सत्य गुणों की खान थीं, छुआ न लेश विकार।।

बाहर से चट्टान सम,  अंतस अतिशय पीर।
नयन-नीर की ले मसि, रच डाली तकदीर।।

कूट-कूट कर गुण भरे, करुणा-ममता-त्याग।
वृत्त रहा निर्मल सदा,      लगा न कोई दाग।।

दुश्मन की हर योजना, करतीं पल में भंग।
दूरदर्शिता आपकी,       देख सभी थे दंग।।

राज्य-प्रजा के हित सदा, रहती थीं बेचैन।
तनिक न अपना ध्यान था, पल भर मिला न चैन।।

पग-पग मिलीं चुनौतियाँ, आए कठिन प्रसंग।
खरी कसौटी पर रहीं,         साधे रक्खे अंग।।

अद्भुत उनके कार्य थे, अद्भुत उनका न्याय।
उनके साहस-त्याग का,   कोई नहीं पर्याय।।

ज्यों-ज्यों तम को चीरतीं, घिरता फिर अँधियार।
सूर्य-किरण बन कौंधती,    कर्मों की चमकार।।

कड़ी परीक्षा की घड़ी,  लुटता जीवन-कोष।
किस्मत को ललकारतीं,  भर आँखों में रोष।।

एक-एक कर खो दिए, प्राण-पियारे तीन।
रानी होकर भी रहीं,    सदा अभागी दीन।।

कितने अपने चल बसे,शिव शंकर के धाम।
अंतस में पीड़ा लिए,      करतीं सारे काम।।

जन-जन की माता बनीं, संततिहित में लीन।
मातोश्री बन आज भी, उर-आसन आसीन।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Tuesday, 13 May 2025

इतने कहाँ समर्थ...


"समर्थ" की शान में एक असमर्थ प्राय प्राणी के हृदयोद्गार...😅

इतना चिट्ठा क्यों भला, माँग रही सरकार।
देते-देते थक चुके,     बार-बार क्यों वार ?।।

भेजी फिर से ये बला, क्या अब इसका अर्थ ?
दिन जाने के आ रहे,    कहती- बनो समर्थ।।

साध सकें ये पोर्टल,    इतने कहाँ समर्थ ?
इसको भरने में हुए, साबित हम असमर्थ।।

नौका अपनी डूबती, फँसी बीच मझधार।
कौन मिले इस हाल में, खड़ा लिए पतवार।।

रोज नयी इक जंग है, रोज नया संग्राम।
नयी-नयी टैक्नीक हैं, नये-नये हैं काम।।

*©* सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

फोटो गूगल से साभार

Sunday, 11 May 2025

एक दोहा...

बड़े-बड़े प्रबुद्ध यहाँ,   देखे आत्म विमुग्ध।
सार न जाने ज्ञान का, कहते खुद को बुद्ध।।

© सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद

Thursday, 8 May 2025

कुछ दोहे...

कुछ दोहे...

तुलना मेरी आपकी, कैसे हो प्रभु मान्य ?
आप महकता खेत हैं, मैं अदना सा धान्य।।१।।

करो समर्पण राम सा,  सीता सा संघर्ष।
जो तुम चाहो देखना, प्रेम - नेम उत्कर्ष।।२।।

चढ़ा आवरण झूठ का, दिखते हैं झक्कास।
कहने भर के ठाठ बस, भीतर से खल्लास।।३।।

एक किनारे से बँधी, नाव न करती पार।
चलना ही जीवन समझ, चलकर उतरे पार।।४।।

तट से जो नौका बँधी, गाँठ बाँधती छार।
अकर्मण्यता जीव की, केवल भू पर भार।।५।।

नींद न आती रात भर, मन में उठें फितूर।
ख्याली घोड़े  दौड़ते, सरपट कितनी दूर।।६।।

भेजा मेला देखने,     देखा- हुए निहाल।
पलट बुलाएँ तात जब, जाएंगे तत्काल।।७।।

अजब यहाँ माहौल है, अजब यहाँ के खेल।
ऐसे जग के साथ प्रभु,     मिले न मेरा मेल।।८।।

माँ मेरी मुझसे कहे, लगा न जग से नेह।
चंद दिनों रहकर यहाँ, जाना अपने गेह।।९।।

बस्ती में डाका पड़ा, घर-घर में अति शोर।
निर्धन चिन्ता क्या करे, क्या ले लेगा चोर ?।।१०।।

दौलत बढ़ती देखकर, बढ़ जाता मन-कूप।
अंत न होता चाह का, आती धर  नव रूप।।११।।

© ® डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. ) 
साझा संग्रह "कल्पलता" से

Monday, 21 April 2025

पृथ्वी माँ सी पूज्य है...

पृथ्वी माँ सी पूज्य है, रक्खो सदा सहेज।
हरी-भरी हँसती रहे,  खुशियों से लबरेज।।

जननी सा पाले हमें,    देती जीवन-दान।
भार बनो मत मानवों, करो धरा का मान।।

ये  नैसर्गिक संपदा, कुदरत के उपहार।
पृथ्वी सबकी एक है, सब हैं भागीदार।।

वृक्षों का रोपण करो, रहे धरा संपन्न।
हरियाली चहुँ ओर हो, बहुविध उपजे अन्न।।

घर-घर ए.सी. लग रहे, बढ़ा धरा का ताप।
ताल-सरोवर  सूखते,     कौन हरे संताप ?।।

सुविधा बनी विलासिता, बढ़ते लालच भोग।
घुन बन जीवन लीलता, महा स्वार्थ का रोग।।

धरती रुग्णा हो रही,     घटती अनुदिन श्वास।
कीमत पर अस्तित्व के, क्यों ये भोग-विलास ?।।

वनीकरण संकल्प ले,     रोकें तुरत कटान।
निकट अन्यथा जानिए, जीवन का अवसान।।

चलें पलट इक बार फिर, विगत दिनों की ओर।
रजत चाँदनी में नहा,          चूमें स्वर्णिम भोर।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
"दोहा संग्रह" से

फोटोज गूगल से साभार

Saturday, 19 April 2025

हो सका कब ख्वाब अपना...



ख्वाब ही देखा किए हम, हो सका कब ख्वाब अपना।
प्यार की खातिर जिए हम, हो सका कब प्यार अपना।

याद है तुमने कहा था, साथ छोड़ेंगे न अब हम।
लाख मुश्किल रोज आएँ, मुँह न मोड़ेंगे कभी हम।
एक है मंजिल हमारी, साथ मिल पथ तय करेंगे।
प्राथमिकता क्या हमारी, मिल प्रथम निश्चय करेंगे।
पर कहाँ है आज प्रण वो, है कहाँ वो आज सपना।

जो दुआ देते तुम्हें नित, तुम उन्हीं को चोट देते।
ढाँपने गलती सभी फिर, फलसफों की ओट लेते।
टालना आदत तुम्हारी, मुकरना पहचान भर है।
फर्ज सारे भूलते तुम,ज्ञात बस अधिकार भर है।
छद्म ले डूबा हमें हा, शेष अब नित-नित तड़पना।

झूठ के भी पाँव होते, क्या कभी ऐसा सुना है ?
सत्य को छल से फँसाने, जाल फिर ये क्यों बुना है ?
झूठ कितना भी बली हो, सत्य पर झुकता कहाँ है।
राह सच की चल पड़ा जो, फिर कदम रुकता कहाँ है।
साँच पर यदि आँच आए, जानते उससे निपटना।

प्यार की खातिर जिए हम, हो सका कब प्यार अपना।
ख्वाब ही देखा किए बस, हो सका कब ख्वाब अपना।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
"कलम किरण" से

दोहे एकादश...

तुलना मेरी आपकी, कैसे हो प्रभु मान्य ?
आप महकता खेत हैं, मैं अदना सा धान्य।।१।।

करो समर्पण राम सा,  सीता सा संघर्ष।
जो तुम चाहो देखना, प्रेम - नेम उत्कर्ष।।२।।

चढ़ा आवरण झूठ का, दिखते हैं झक्कास।
कहने भर के ठाठ बस, भीतर से खल्लास।।३।।

एक किनारे से बँधी, नाव न करती पार।
चलना ही जीवन समझ, चलकर उतरे पार।।४।।

तट से जो नौका बँधी, गाँठ बाँधती छार।
अकर्मण्यता जीव की, केवल भू पर भार।।५।।

नींद न आती रात भर, मन में उठें फितूर।
ख्याली घोड़े  दौड़ते, सरपट कितनी दूर।।६।।

भेजा मेला देखने,     देखा- हुए निहाल।
पलट बुलाएँ तात जब, जाएंगे तत्काल।।७।।

अजब यहाँ माहौल है, अजब यहाँ के खेल।
ऐसे जग के साथ प्रभु,     मिले न मेरा मेल।।८।।

माँ मेरी मुझसे कहे, लगा न जग से नेह।
चंद दिनों रहकर यहाँ, जाना अपने गेह।।९।।

बस्ती में डाका पड़ा, घर-घर में अति शोर।
निर्धन चिन्ता क्या करे, क्या ले लेगा चोर ?।।१०।।

दौलत बढ़ती देखकर, बढ़ जाता मन-कूप।
अंत न होता चाह का, आती धर  नव रूप।।११।।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
   मुरादाबाद ( उ.प्र. )
   "कल्पलता" काव्य संग्रह से

Monday, 7 April 2025

#राष्ट्रीयसबहमारादिवस

माँ प्रकृति के चरणों में....

जीवन जो तुमसे पाया है, कैसे उसका आभार करें।
नमन तुम्हें हम करते हैं माँ, निज शीश झुका,    स्वीकार करें।

तुम कुदरत हो तुम प्रकृति हो, 
तुम तो माँ की भी माता हो !
वक्त तुम्हारी शय पर चलता, 
तुम जग की भाग्य-विधाता हो !
नदी-सरोवर, चाँद- सितारे
जीव चराचर  जग के सारे
सब ही अपने बंधु-सखा हैं, क्यों बीच खड़ी दीवार करें।
नमन तुम्हें हम करते हैं माँ ! निज शीश झुका,    स्वीकार करें।

आ तो गए हम कोख से माँ की, 
पर स्पंदन तुमसे पाया है।
जीवन-सजीवन ऑक्सीजन दे, 
प्राणों को तुमने जिलाया है।
मान गए हम, जान गए हम, 
पत्ता भी तुमसे हिलता है।
भोली सी छवि आँक तुम्हारी, मूरत दिल में साकार करें।
नमन तुम्हें हम करते हैं माँ ! निज शीश झुका,    स्वीकार करें।

आतप-छाँह, जल-वायु देकर,
माटी में अपनी पोसा है।
खुशियाँ सकल जुटाईं हमको
तोड़ा हमीं ने भरोसा है।
इतने हैं उपकार तुम्हारे,
उऋण कभी क्या हो पाएँगे ?
स्वार्थ तजें परहित में रत हों, आत्म-तत्व का विस्तार करें।
नमन तुम्हें हम करते हैं माँ ! निज शीश झुका,    स्वीकार करें।

शपथ हमें दामन पे तुम्हारे, 
आँच न कोई आने देंगे।
बरसें सावन खुशियों के बस, 
मेघ न गम के छाने देंगें।
ज्यादा नहीं हमें कुछ लेना 
जो भी लेना, बढ़कर देना
इक दूजे से पाएँ भर-भर, प्रेम का सरल व्यापार करें
नमन तुम्हें हम करते हैं माँ ! निज शीश झुका,    स्वीकार करें।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
8 अप्रैल,
#राष्ट्रीयसबहमारादिवस
फोटो गूगल से साभार

Sunday, 6 April 2025

आओ बेर चुनें नेकी के...

कण-कण व्यापी राम, घट-घट व्यापी राम।
गूँजे चहुँ दिशि नाम, नहीं राम सा नाम।
महाबली श्रीराम,    साधें सबके काम।
जप ले मनवा राम, भज ले सीता राम।

बजें नगाड़े ढोल दुंदुभी,    मंदिर घंटा नाद करें।
रामभक्ति की रामभक्त मिल, एक नयी बुनियाद धरें।
कथा श्रवण कर हम रघुवर की, राम नाम का जाप करें।
माया के पचड़ों में पड़कर, वक्त न अब बरबाद करें।

सुमिरन जिसके नाम का, साधे सारे काम।
मनके उसके नाम के,    फेरूँ सुबहो शाम।।
राम नाम की संपदा, अक्षय सुख-भंडार।
राम नाम के जाप से,   सबका बेड़ा पार।।

आओ बेर चुनें नेकी के, आएँगे तब काम।
दर्शन देने हमको भी जब,आएँगे श्री राम।
सत्कर्मों की बाँध पोटली, रक्खें कहीं सँभाल।
अंतिम सफर अकेले करना, यही बनेगी ढाल।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
"मुक्तक माल" से

Saturday, 5 April 2025

जय जय जय श्री राम....

चैत्र मास की तिथि नवम्, लिया राम अवतार।
कौशल्या की कोख से,    उपजा जग-कर्त्तार।।

सूर्य किरन से देखिए, दीपित राम ललाट।
ले  दर्शन की लालसा, भक्त  जोहते वाट।।

जयकारे प्रभु नाम के, गूँज रहे चहुँ ओर।
अब तक जो उलझे रहे, सुलझ रहे सब छोर।।

श्याम शिला निर्मित वपु,      मोहे छटा अनूप।
बरबस मन वश में करे, प्रभु का बाल स्वरूप।।

जलमय संकुल मेघ सम, श्याम बरन प्रभु राम।
मन पुष्पित-पुलकित करें,  सरस-बरस घनश्याम।।

कंठा कंगन करधनी, केसर कुंकुम भाल।
उर शोभित कौस्तुभमणि, गल वैजंतीमाल।।

शोभित पैजनियाँ छड़ा, पाँव महावर लाल।
स्वर्ण मुकुट मस्तक फबे, कुंडल पदिक कमाल।।

कोटि प्रभाएँ सूर्य की, आभा मंडित रूप।
नैना मादक रसभरे,    भरे सभी मनकूप।।

इच्छाएँ भटकें नहीं, मिले धीरता-दान।
शील वरें सब राम-सा, करें जगत-उत्थान।।

नजर पड़े जिस ओर भी, उसी नजर में राम।
हर बोली हर बोल में,     समा  गए  हैं  राम।।

बिना राम के नाम के, सरे न कोई काम।
जीवन के हर कर्म में,    रमे हुए हैं राम।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
फोटो गूगल से साभार

बात ही कुछ उन दिनों की....

बात ही कुछ उन दिनों की...

उन दिनों की बात में रस।
उन दिनों की रात में रस।
उन दिनों मौसम हसीं था,
उन दिनों बरसात में रस।

उन दिनों बातें निराली।
उन दिनों रातें उजाली।
उन दिनों सब कुछ सुखद था,
उन दिनों हर ओर लाली।

उन दिनों हर दिन रँगीला।
उन दिनों सावन सजीला।
साँझ पलकों पर उतरती,
आँजती अंजन लजीला।

उन दिनों हँसना सरल था।
भावभीना   मन तरल था।
बोल अमृत से सने थे,
उन दिनों कब ये गरल था।

उन दिनों को याद करके,
आँख से आँसू बरसते।
उन दिनों की बात क्या,अब
बात करने को तरसते।

आज भी ठहरे वहीं हम,
उन दिनों को जी रहे हैं।
रिस रहा हर पोर से जो,
अर्क  नेहिल  पी  रहे हैं।

हूक सी मन में उठी है,
उन दिनों को छीन लाएँ।
टूटकर छिटकी कहीं जो,
हर कड़ी वो बीन लाएँ।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
"गीत सौंधे जिंदगी के" से

या देवी सर्वभूतेषु...



माँ गौरी श्वेताम्बरा, चंद्रवदन अवदात।
दंत कुंद की पाँखुरी, मंद-मंद मुस्कात।।

चंद्र कुंद अरु शंख सम, शुभ्र वर्ण अम्लान।
वरमुद्रा वरदायिनी,    देती शुभता दान।।

श्वेत वृषभ आरूढ़ हो, धारे हस्त त्रिशूल।
माँ गौरी निज भक्त के, हर लेतीं हर शूल।।

महा अष्टमी पर करें, माँ गौरा का ध्यान।
संकट सारे दूर हों, मिले अभय का दान।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

फोटो गूगल से साभार