भभका सूरज जेठ में, उगले रहरह आग।
वट-पूनम की चाँदनी, छिटक रही अनुराग।।
दिवस भभकते आग से, झुलसे भू की देह।
मधुर-मधुर मृदु चाँदनी, ज्यों शीतल अवलेह।।
जन्म कबीरा- वेद का, सरयू का प्राकट्य।
अद्भुत पूनम जेठ की, अद्भुत ये वैशिष्ट्य।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
फोटो गूगल से साभार
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