Saturday 29 July 2023

फ़ितरत अपनी-अपनी...

फ़ितरत अपनी अपनी…

जान जाते जो तुम्हें हम, दिल न यूँ तुमसे लगाते।
क्यों जगाते कामनाएँ, चाहतों को पर लगाते ?

जानते जो बेवफाई, है तुम्हारी फ़ितरतों में,
जिंदगी के राज अपने, क्यों तुम्हें सारे बताते ?

जो पता होता हमें ये, तुम नहीं लायक हमारे,
किसलिए तुमको रिझाने, महफिलें दिल की सजाते ?

जो भनक होती जरा भी, है तुम्हारी प्रीत झूठी,
देख तुमको पास हम यूँ, होश क्यों अपने गँवाते ?

था यही बस ज्ञात हमको, तुम हमारे नित रहोगे,
इसलिए हर बात दिल की, फ़ितरतन तुमको सुनाते।

हर कदम देना दगा बस, कूट फ़ितरत थी तुम्हारी।
काश, इक पल तो कभी इन, हरकतों से बाज आते।

आरियाँ दिल पर चलाते, तोड़ कर विश्वास मन का,
क्या गुजरती चोट खा यूँ, काश तुम ये जान पाते ।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Friday 28 July 2023

फितरत दुनिया की....

फितरत दुनिया की…

ये तो दुनिया की फितरत है,
अपना कहती फिर छलती है।
 मुँह पर करती मीठी बातें,
पर पीछे चालें चलती है।

किए बड़े थे उसने वादे।
मगर नहीं थे नेक इरादे।
झूठ खुला तो जाना, कैसे-
चतुराई रूप बदलती है।

मीठी बोली में विष-गोली।
नज़र बचाकर उसने घोली।
भाँप न पाया दिल ये मेरा,
इसमें मेरी क्या गलती है।

दिल पर जो छुपछुप घात करे।
छल से आहत ज़ज्बात करे।
वाकिफ़ रहे सदा इस सच से,
आह भी एक दिन फलती है।

जग में सूरज- चाँद-सितारे।
आते – जाते बारी – बारी।
दिन भी सदा न सबका रहता,
रात भी सभी की ढलती है।

कभी किसी की रातें लम्बी।
कभी किसी के दिन बढ़ जाते।
भाग बराबर मिलता सबको,
समता से दुनिया चलती है।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Tuesday 25 July 2023

स्मृति-बिम्ब उभरे नयन में...

स्मृति-बिम्ब उभरे नयन में….

स्मृति-बिम्ब उभरे नयन में ….

दुआ-बद्दुआ जिस-जिस से मिली, फलती रही।
किस्मत भी टेढ़ी-मेढ़ी, चाल अपनी चलती रही।

झुलसता रहा जीवन, संघर्ष-अनल-आवर्त में,
प्रीत-वर्तिका भी मद्धम, बीच रिदय जलती रही।

नेह-प्यासा मन भ्रमित हो, तप्त मरू तक आया,
मरीचिका-सी जिंदगी, भुलावा दे-दे छलती रही।

साँझ ढले घिर आया, तमस अमा का जिंदगी में,
भीगी-भीगी सी शम्आ, बुझती रही जलती रही।

उफ ! कैसा नूर था, उस चन्द्र-वलय से आनन में,
हर शब ही मन में चाँदनी, घुलती-पिघलती रही।

यूँ ही जगते रात बीती, नींद कहाँ और चैन कहाँ ?
स्मृति-बिम्ब उभरे नयन में, चित्रपटी चलती रही।

तामझाम सब समेट जग से, बैठी ‘सीमा’ राह में,
मौत दर तक आते-आते, जाने क्यों टलती रही।

©-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

'मृगतृषा' से

Wednesday 19 July 2023

वक्त ये कितना कड़ा है....


वक्त ये कितना कड़ा है।
किस कदर तनकर खड़ा है।

कौन किससे क्या कहे अब,
बंद मुँह ताला जड़ा है।

सत्य लुंठित सकपकाया,
एक कोने में पड़ा है।

चल रहा है चाल सरपट,
झूठ पैरों पर खड़ा है।

देख तो ये ढीठ कितना,
बात पर अपनी अड़ा है।

बात ऐसी कुछ नहीं थी,
बेवजह ही लड़ पड़ा है।

शोक-निमग्न सारा चमन,
पुष्प असमय ही झड़ा है।

होता नहीं कुछ भी असर,
आदमी चिकना घड़ा है।

देख रोता आज जग को,
दर्द अपना हँस पड़ा है।

इस दहलती जिंदगी में,
हौसला सबसे बड़ा है।

होश में ‘सीमा’ न कोई,
बिन पिए जग बेबड़ा है।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Thursday 13 July 2023

बरसात...

बरसात…

दिल्ली से भी दिल्लगी, कर बैठी बरसात।
पानी-पानी हो रही, नाजुक हैं हालात।।

किसी तरह अब जल्द ही, सुलझें ये हालात।
हर पल मन में खौफ है, बिगड़ न जाए बात।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
फोटो- गूगल से साभार

शंभु जीवन-पुष्प रचें...

शंभु जीवन-पुष्प रचें….

शंभु जीवन-पुष्प रचें, गौरा पूरें गंध।
दोनों के सहयोग से, सम्पूरित मृदु बंध।।

करुणा के आगार शिव, मन मेरा कविलास।
हृदय-कमल में वास हो, रहें नित्य ही पास।।

हो देवों के देव तुम, नहीं आदि-अवसान।
करो कृपा निज भक्त पर, आशुतोष भगवान।।

सार तुम्हीं संसार के, करुणा के अवतार।
मन को निर्मल शुद्ध कर, हरते सभी विकार।।

महिमा भोलेनाथ की, अगजग में है व्याप्त।
जो भी जो कुछ माँगता, हो जाता वह प्राप्त।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

चित्र गूगल से साभार

Sunday 9 July 2023

सावन बरसता है उधर...

सावन बरसता है उधर….

सावन बरसता है…..

सावन बरसता है उधर, इधर दो नैन बरसते हैं।
चाह में तुम्हारी आज भी हम, दिन-रैन तरसते हैं।

प्यास-तपन सब मिटी, धरा हर्ष-मगन इठलाए।
आक-जवास के जैसे, मेरे अरमान झुलसते हैं।

जाकर फिर न पलटे, परदेसी कहाँ तुम भूले ?
खोज में कबसे तुम्हारी, हम दर-दर भटकते हैं।

तसव्वुर में संग तुम्हारे, यूँ तो हम जी लेते हैं।
पर एक झलक पाने को, ये मन-प्रान तरसते हैं।

बिन तुम्हारे सूना-सूना, घर का कोना-कोना।
आँगन तरसता है, सूने दर-ओ-दीवार तरसते हैं।

कितना तुम्हें चाहा, पर जुबां पे नाम न आया।
कहने में बात दिल की, हम अब भी हिचकते हैं।

बीच भँवर में छोड़ नैया, जाने किस ओर मुड़े।
मिल बुने जो साथ तुम्हारे, वो ख्वाब किलसते हैं।

रक्खे तुम्हें सलामत, दुआ कुबूले रब ‘सीमा’ की।
करुण रुदन से आर्तस्वरा के, पाहन भी पिघलते हैं।

©  डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र)

Saturday 8 July 2023

अपना नैनीताल...

अपना नैनीताल

साठ मनोरम तालयुत, भव्य रूप अवदात।
षष्ठिखात के नाम से, हुआ प्रथम विख्यात।।

लिए सती-शव शिव चले, होकर जब बेचैन।
तन के अनगिन भाग में, गिरे यहीं थे नैन।।

मंदिर देवी का बना, पाया नैना नाम।
भक्तों के उद्धार हित, महापुण्य का धाम।।

अत्रि, पुस्त्य और पुलह, पौराणिक ऋषि तीन।
गुजर रहे इस मार्ग से, रुके    प्यास - आधीन।।

नैसर्गिक सौंदर्य यहाँ, बिखरा देख अकूत।
बढ़ी रमण की लालसा, हुआ रिदय अभिभूत।

खोदी भू त्रिशूल से, लेकर प्रभु का नाम।
त्रिधार युत ताल बना, त्रिऋषि सरोवर धाम।।

पी. वैरन की कल्पना, हुई सत्य साकार।
झीलों की नगरी बनी, मिला भव्य आकार।।

ये बर्फीली चोटियाँ, उतरे ज्यों घन पुंज।
मन को हरती वादियाँ, लता गुल्म औ कुंज।।

नीम करौरी तीर्थ है, कहते कैंची धाम।
बाबा के आशीष से, सधते सारे काम।।

छटा अनूठी रात की ,जगमग करतीं झील।
लहर-लहर बल्वावली, दीपित ज्यों कंदील।।

स्नो व्यू और हनी बनी, दृश्य नयनाभिराम।
हरीतिमा पसरी यहाँ, मोहक सुखद ललाम।।

हिम-आच्छादित चोटियाँ, ऊपर नैना पीक।
चप्पा-चप्पा शहर का, दिखे यहाँ से नीक।।  

लैला-मजनू पेड़ दो, बने झील की शान।
मौसम में बरसात के, करते आँसू दान।।

हरी-भरी हैं वादियाँ, सात मनोरम ताल।
मौसम जब अनुकूल हो, आएँ नैनीताल।।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी, मुरादाबाद

Thursday 6 July 2023

एक मुक्तक

महल चिन नेह का निर्मल, सुघड़ बुनियाद रक्खूँगी।

महल चिन नेह का निर्मल, सुघड़ बुनियाद रक्खूँगी।
तरन्नुम में सदा मधुमय, सरस संवाद रक्खूँगी।
सदा ही गूँजता मन में, तराना प्रेम का अपने।
कि यादों से भरा ये दिल, सदा आबाद रक्खूँगी।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Tuesday 4 July 2023

आया सावन झूम के...

ध्यान-उपवास-साधना, स्व अवलोकन कार्य।

ध्यान-उपवास-साधना, स्व अवलोकन कार्य।
हितकर चातुर्मास में, धर्म-कर्म-औदार्य।।

बरसे बादल झूम के, आया सावन मास।
रोम-रोम से फूटता, धरती का उल्लास।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Saturday 1 July 2023

फितरत दुनिया की....

फितरत दुनिया की…

इस दुनिया की ये फितरत है।
अपना कहती फिर छलती है।
बाहर- बाहर मीठी बातें,
पर भीतर चालें चलती है।

किए बड़े थे उसने वादे।
मगर नहीं थे नेक इरादे।
झूठ खुला तो जाना, कैसे
चतुराई रूप बदलती है।

मीठी बोली में विष-गोली।
नज़र बचाकर उसने घोली।
भाँप न पाया दिल ये मेरा,
इसमें मेरी क्या गलती है ?

दिल पर जो छुपछुप घात करे।
छल से आहत जज्बात करे।
वाकिफ सदा रहे इस सच से,
आह भी एक दिन फलती है।

जग में सूरज- चाँद-सितारे।
आते – जाते बारी – बारी।
दिन भी सदा न सबका रहता,
रात भी सभी की ढलती है।

कभी किसी की रातें लम्बी।
कभी किसी के दिन बढ़ जाते।
भाग बराबर मिलता सबको,
समता से दुनिया चलती है।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद