बचपन से साथी रहे, लूडो कैरम ताश।
क्या कहने शतरंज के, जकड़े रखता पाश।।
चिंताएँ सब ताख रख, खेलें चल शतरंज।
गिज़ा मिले कुछ बुद्धि को, मिट जाएँ सब रंज।
दौड़ी फिरती हर तरफ, सीधी-तिरछी चाल।
रानी है शतरंज की, कब क्या करे कमाल।।
सोच समझ आगे बढ़े, जिंदा करे वजीर।
अदना सा प्यादा अहा, रचता नयी नजीर।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
फोटोज गूगल से साभार
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