रोज खिड़की में उझककर,
चाँद छुप-छुप झाँकता है।
कौन जाने रात भर ये,
रूप किसका आँकता है।
देख ले इसकी झलक तो,
तम सघन भी जगमगाए।
चल रहा धुन में अकेला,
गम कहीं अपना छुपाए।
रात की काली चुनर में,
गोट-तारे टाँकता है।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
"गीत सौंधे जिंदगी के" से
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