लिए शंभु की चाह में, जन्म एक सौ आठ।
जपें शिवा शिव नाम बस, भूलीं सारे ठाठ।।
चाह घनी मन में बसी, पाना है निज प्रेय।
भूलीं सारे भोग माँ, याद रहा बस ध्येय।।
शिव-आराधन लीन हो, त्यागे सारे भोग।
बिल्व पत्र के बल किए, सिद्ध साधना योग।।
निराहार निर्जल शिवा, शिवमय सुबहो-शाम।
त्याग पर्ण तन धारतीं, पड़ा अपर्णा नाम।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
"किंजल्किनी" से
फोटो गूगल से साभार
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