जीवन-भर जिसको गम ढोना।
उसका होना भी क्या होना।
करना हँसकर काम सभी पर,
लिखा भाग्य में केवल रोना।
आँसू-चिंता-गम जग भर के,
यही ओढ़नी, यही बिछोना।
मान नहीं जिसमें मुखिया का,
उस घर का होना क्या होना।
कंकड़ छिटके, गढ़े पाँव में,
झाड़ा जब यादों का कोना।
झाँको-देखो छूकर भीतर,
अश्कों से तर है हर कोना।
किस्मत मेरी रचने वाले,
बीज न ऐसा फिर तू बोना।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
"सजल संग्रह" से
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