आस लगाए खोखली, तड़प रहा दिन-रैन।।
कनियाँ सुख की बीनते, गड़ी पाँव में कील।
हँसते लमहे हो गए, आँसू में तब्दील।।
बात बदलते थे सभी, बदल रही अब वात।
सता रहा क्यों आजकल, भय कोई अज्ञात।।
लील रही सुख चैन सब, ये तूफानी रात।
कुछ' समझ आता नहीं, क्या होंगे हालात।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद.( उ.प्र. )
"किंजल्किनी" से
No comments:
Post a Comment