सफर जिंदगी का सरल अब कहाँ है !
सुकूं वो दिलों में रहा अब कहाँ है !
बदल सा रहा है चलन भी घरों का,
इमारत बड़ी घर बड़ा अब कहाँ है !
फलित अब न होतीं दुआएँ-बलाएँ,
कथन में रहा वो असर अब कहाँ है !
गहन है उदासी वदन पर तुम्हारे,
चपलता भरी वो नजर अब कहाँ है !
सभी का जहां ये वतन भी सभी का,
मगर एकता की झलक अब कहाँ है !
रहन भी सहन भी बदल सब गया है,
बड़ों की घरों में कदर अब कहाँ है !
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
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