Saturday, 2 August 2025

वे कभी जब बोलते हैं...

वे कभी जब बोलते हैं।
बस अनर्गल  बोलते हैं।

हैं प्रखर वक्ता शहर के।
गीत गाते  हर ब़हर के।
बोल सब उनकी जुबां पर,
भोर-संझा-दोपहर के।
आँख पर चश्मा चढ़ाए,
कुछ लिखा कुछ बोलते हैं।

सब गलत पर वो सही हैं।
जानते खुद कुछ नहीं हैं।
दोष मढ़ना, रोष करना,
आदतें उनकी रही हैं।
हर किसी की हैसियत वे,
रत्तियों में तोलते हैं।

वे कभी जब बोलते हैं।
बस अनर्गल  बोलते हैं।

सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

No comments:

Post a Comment