Thursday, 4 September 2025

सद्गुरु ब्रह्म स्वरूप...

सद्गुरु ब्रह्म स्वरूप है, चरनन में सुख वास।
मृण्मय से चिन्मय करे,  अंतस भरे उजास।।

जाना जब गुरुदेव से,  इस जीवन का सार।
बुद्धि को मेरी मिला,    एक नया आकार।।

जीवन में भीतर तलक, छाया था तम घोर।
ज्ञान-कौंध मन पर पड़ी, हुई सुनहरी भोर।।

अंतस के अँधियार हित, गुरु सूरज सम जान।
एक किरण से ज्ञान की,    हरे तमस-अज्ञान।।

जर्जर जीवन-नाव से, गुरु ही करता पार।
बीच भँवर नैया फँसे, बनता गुरु पतवार।।

सिर पर धारे शिष्य जो, गुरु चरणों की धूल।
उसको पथ के शूल भी, लगते कोमल फूल।।

गुरु का श्रद्धा भाव से, करती वंदन नित्य।
चमके गुर्वाशीष से,    भीतर  ज्ञानादित्य।।

बड़भागी हैं वे मनुज,  सतगुरु जिनके पास।
ज्ञान-मिहिर मन-नभ उगे, मुख पर दिपे उजास।।

© सीमा अग्रवाल
"किंजल्किनी" से

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