Friday, 17 October 2025

आया कातिक मास...

त्योहारों की लिए गठरिया,
आया कातिक मास।
उतर चाँदनी करती भू पर,
परियों जैसा लास।

धनतेरस की धूम मची है,
सजे सभी बाजार।
धन ते रस है रस ते खुशियाँ,
रसमय सब संसार।
बरसे धन सबके घर-आँगन
हो लक्ष्मी का वास।

आया कातिक मास...

रूप निखारें दिवस दूसरे,
कर अभ्यंग स्नान।
नरकासुर को मार मुरारी,
दिए अभय का दान।
दीप जला चौरे पर रक्खें,
काल न आए पास।

आया कातिक मास...

आज दिवाली का उत्सव है,
चहुँ दिसि है उल्लास।
सजे द्वार-घर-आँगन सबके
अद्भुत अलग उजास।
पकवानों की सोंधी-सोंधी,
उठती मधुर सुवास।

आया कातिक मास...

माना रात अमा की काली,
विकट घना अँधियार।
उसे बेधने आयी देखो,
जगमग दीप-कतार।
उतरा नभ ले नखत धरा पर,
होता ये आभास।

आया कातिक मास...

आज नखत सब उतरे भू पर,
कर नभ में अँधियार।
प्रभु दरसन की दिल में अपने,
लेकर ललक अपार।
आज अवध में खुशी निराली,
पुलकित हर रनिवास।

आया कातिक मास...

गोवर्धन पर गौ की पूजा,
अन्नकूट का भोग।
करें मुरारी रक्षा सबकी,
फटक न पाएँ रोग।
भरे सुखों से झोली सबकी,
चुभे न गम की फाँस।

आया कातिक मास...

यम द्वितीया पर्व आखिरी,
मंगलमय त्योहार।
तिलक लगा भ्रातृ को बहना
पाए प्रिय उपहार।
परंपरा ये पंच पर्व की
मन में भरे उजास।

आया कातिक मास...

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

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