साँझ-सकारे कर ले मनवा,
राम-नाम का जाप।
मिट जाएंगे राम-नाम से,
भव-भौतिक सब ताप।
राम शिरोमणि आदर्शों के,
मर्यादा के धाम।
रूप-रंग में सम्मुख जिनके,
फीका पड़ता काम।
कलयुग में भी त्रेतायुग सी,
राम-नाम की छाप।
दर्शन करने भव्य रूप के,
चलो अयोध्या धाम।
लाभ नयन ये पा जाएंगे,
बिन खरचे कुछ दाम।
पावन सरयू में डुबकी ले,
धुल जाएंगे पाप।
राम सरिस बस राम अकेले,
नहीं दूसरा नाम।
फेरूँ मनके राम-नाम के,
मैं तो सुबहो-शाम।
कौन नहीं जो जाने जग में,
राम-नाम परताप।
राग-द्वेष से मुक्त सदा ही,
धीर-वीर-गंभीर।
अभय दे रहे धारे कर में,
प्रेम-दया के तीर।
परिणत होते वरदानों में,
चरण-धूलि से शाप।
राम रमणते रोम-रोम में,
राम आदि-अवसान।
राम-नाम की महिमा न्यारी,
करें संत गुणगान।
लौ न लगे यदि राम-नाम में,
पीछे हो अनुताप।
कर ले मनवा साँझ सकारे,
राम-नाम का जाप।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
"गीत सौंधे जिंदगी के" से