Thursday, 31 July 2025

साँझ-सकारे कर ले मनवा...

साँझ-सकारे कर ले मनवा,
राम-नाम  का  जाप।
मिट जाएंगे राम-नाम से,
भव-भौतिक सब ताप।

राम शिरोमणि आदर्शों के,
मर्यादा के धाम।
रूप-रंग में सम्मुख जिनके,
फीका पड़ता काम।
कलयुग में भी त्रेतायुग सी,
राम-नाम की छाप।

दर्शन करने भव्य रूप के,
चलो अयोध्या धाम।
लाभ नयन ये पा जाएंगे,
बिन खरचे कुछ दाम।
पावन सरयू में डुबकी ले,
धुल जाएंगे पाप।

राम सरिस बस राम अकेले,
नहीं दूसरा नाम।
फेरूँ मनके राम-नाम के,
मैं तो सुबहो-शाम।
कौन नहीं जो जाने जग में,
राम-नाम परताप।

राग-द्वेष से मुक्त सदा ही,
धीर-वीर-गंभीर।
अभय दे रहे धारे कर में,
प्रेम-दया के तीर।
परिणत होते वरदानों में,
चरण-धूलि से शाप।

राम रमणते रोम-रोम में,
राम आदि-अवसान।
राम-नाम की महिमा न्यारी,
करें संत गुणगान।
लौ न लगे यदि राम-नाम में,
पीछे हो अनुताप।

कर ले मनवा साँझ सकारे,
राम-नाम  का  जाप।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
"गीत सौंधे जिंदगी के" से

याद हमें आता रहरह कर...

याद हमें आता रह-रह कर,
अपना वही अतीत।
मधुर स्मृतियों में खो उसकी,
तिरें अधर पर गीत।

सभी पड़ोसी लगते अपने,
चाचा ताऊ बुआ।
आशीष दिया करते थे सब,
फलती सबकी दुआ।
मधुर संबंधों की फिर वही,
धारा बहे पुनीत।

गली मुहल्ले सब थे अपने,
खेले अनगिन खेल।
सुख की उन प्यारी सुधियों का,
कहाँ किसी से मेल।
नहीं द्वेष आता था मन में,
हार मिले या जीत।

आस-पास होते विद्यालय,
जाते हिलमिल साथ।
लेते थे आशीष बड़ों का,
झुका सभी को माथ।
काश पुनः दुहराएँ मिल सब,
वही पुरानी रीत।

छत से छत थीं जुड़ी सभी की,
मन से मन के तार।
चाँद-चाँदनी तारे जगमग,
लगते हीरक हार।
सधें वही सुर-ताल-लय फिर,
बहे वही संगीत।

वर्तमान की चकाचौंध से,
सिर बहुत चकराए।
खेल रहे जो खेल सभी अब,
जरा समझ न आए।
नहीं कहीं अब पड़े दिखाई,
आपस की वह प्रीत।

याद हमें आता रह-रह कर,
अपना वही अतीत।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
" गीत सौंधे जिंदगी के" से

Wednesday, 30 July 2025

आज प्यासे मर गये वे...

खोदते थे नित कुआँ जो,
आज प्यासे मर गए वे।
सौंप जग को पीर अपनी,
दर्द से हर    तर गए वे।

© सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद


Friday, 25 July 2025

जीवन भर जिसको गम ढोना...

जीवन-भर जिसको गम ढोना।
उसका होना भी    क्या होना।

करना हँसकर काम सभी पर,
लिखा  भाग्य में  केवल  रोना।

आँसू-चिंता-गम जग भर के,
यही ओढ़नी,   यही बिछोना।

मान नहीं जिसमें मुखिया का,
उस घर का होना क्या होना।

कंकड़ छिटके, गढ़े पाँव में,
झाड़ा जब यादों का कोना।

झाँको-देखो  छूकर भीतर,
अश्कों से तर है हर कोना।

किस्मत  मेरी  रचने  वाले,
बीज न ऐसा फिर तू बोना।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
"सजल संग्रह" से

Thursday, 24 July 2025

कैसे करूँ निबाह...

जग-शाला में भेज कर, शिशु अपना नादान।
खोज-खबर फिर ली नहीं, भूला उसका ध्यान।।

मैं तेरी संतान प्रभु,   तुझसे निर्मित काय।
कैसे अब तुझसे मिलूँ, तू ही सुझा उपाय।।

क्या देखा जो कर दिया, जग से मेरा ब्याह ?
पग-पग लानत ठोकरें,   कैसे करूँ निबाह ?

अपने तन से काढ़कर,      भेज दिया परदेश।
देख कभी तो आ मुझे, पग-पग कितने क्लेश।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Tuesday, 22 July 2025

मुँह क्या लगना उन नंगों के...

सेंध लगा औरों के घर में घर जो अपना भरते हैं।
बाज न आते नक़बज़नी से रोज डकैती करते हैं।
मुँह क्या लगना उन नंगों के क्या ही उनका बिगड़ेगा।
अपना क्या उन पर चारा भी जो गैरों का चरते हैं।

सेंध लगाकर पर के घर में उड़ा रहे जो पर का माल।
परजीवी ऐसे जीवों का प्रभु ही जाने क्या हो हाल।
हाय न लेना कभी किसी की हमने तो यही सीखा है।
नजर गड़ाने वाला पर पर जीवन भर रहता कंगाल।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

शिवमय सुबहो शाम...

लिए शंभु की चाह में, जन्म एक सौ आठ।
जपें शिवा शिव नाम बस, भूलीं सारे ठाठ।।

चाह घनी मन में बसी, पाना है निज प्रेय।
भूलीं सारे भोग माँ,  याद रहा बस ध्येय।।

शिव-आराधन लीन हो,     त्यागे सारे भोग।
बिल्व पत्र के बल किए, सिद्ध साधना योग।।

निराहार निर्जल शिवा, शिवमय सुबहो-शाम।
त्याग पर्ण तन धारतीं,      पड़ा अपर्णा नाम।।

© सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद ( उ.प्र. )

"किंजल्किनी" से


फोटो गूगल से साभार

ढूँढे से भी ना मिले...

ढूँढे से भी ना मिले,   खोया दिल का चैन।
आस लगाए खोखली, तड़प रहा दिन-रैन।।

कनियाँ सुख की बीनते, गड़ी पाँव में कील
हँसते लमहे हो गए,         आँसू में तब्दील।।

बात बदलते थे सभी,  बदल रही अब वात।
सता रहा क्यों आजकल, भय कोई अज्ञात।।

लील रही सुख चैन सब,   ये तूफानी रात।
कुछ' समझ आता नहीं, क्या होंगे हालात।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद.( उ.प्र. )
"किंजल्किनी" से

Monday, 21 July 2025

दिन कहाँ अब वे प्रणय के...

दिन कहाँ अब वे प्रणय के।
उस मधुर अभिसार लय के।
रूपसी सी चाँदनी या,
चाँद के वर्तुल वलय के।

भर अहं में कर रहे सब,
एक दूजे से किनारे।
जोड़ नाजुक काँच से हा !
तोड़ देते बिन बिचारे।
अब कहाँ संयोग बनते,
प्रेम में होते विलय के।

स्वार्थ में नित लिप्त दुनिया,
सिर्फ अपना काम साधे।
हिल रही बुनियाद घर की,
हो रहे परिवार आधे।
अंत समझो सृष्टि का अब,
बन रहे बानक प्रलय के।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
"गीत सौंधे जिन्दगी के" से

चाँद छुप-छुप झाँकता है...

रोज खिड़की में उझककर,
चाँद छुप-छुप झाँकता है।
कौन जाने रात भर ये,
रूप किसका आँकता है।

देख ले इसकी झलक तो,
तम सघन भी जगमगाए।
चल रहा धुन में अकेला,
गम कहीं अपना छुपाए।
रात की काली चुनर में,
गोट-तारे टाँकता है।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
"गीत सौंधे जिंदगी के" से


क्या मिलेगा इस विजय से...

कर्म खोटे क्या फलेंगे,
क्या मिलेगा इस विजय से ?
इस तरह जो लूट सबको,
भर रहे झोली अनय से।

छीन लो सुख-साज सारे,
क्या मुकद्दर छीन लोगे ?
भाग्य में जिसके लिखा जो,
मान-धन क्या बीन लोगे ?

देख पाओ सत-असत सब,
कर सको जग की भलाई।
मेट पाओ दर्द जग का,
पा गए जब वो उँचाई।

आसमां भी झुक रहा ज्यों,
नत रहो तुम भी विनय से।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
"गीत सौंधे जिंदगी के" से


Sunday, 20 July 2025

20 जुलाई, अंतर्राष्ट्रीय शतरंज दिवस पर सभी शतरंज खिलाड़ियों को मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ...

बचपन से साथी रहे,      लूडो कैरम ताश।
क्या कहने शतरंज के, जकड़े रखता पाश।।

चिंताएँ सब ताख रख, खेलें चल शतरंज।
गिज़ा मिले कुछ बुद्धि को, मिट जाएँ सब रंज।

दौड़ी फिरती हर तरफ, सीधी-तिरछी चाल।
रानी है शतरंज की,  कब क्या करे कमाल।।

सोच समझ आगे बढ़े, जिंदा करे वजीर।
अदना सा प्यादा अहा, रचता नयी नजीर।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
फोटोज गूगल से साभार

Saturday, 12 July 2025

कैसी हो कल भोर...

पुष्प-कली-पल्लव सभी, रहें सदा गुलज़ार।
हम तो अब हैं बागवां,       जाती हुई बहार।।

धीरे-धीरे बढ़ रहे,      जाते कल की ओर।
बतलाएगा कौन अब, कैसी हो कल भोर।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

Tuesday, 8 July 2025

है इसी में जीत अपनी...

चाहता मन पी तमस सब,
बाँट दूँ घर-घर उजाले।
नीर है इतना दृगों में,
प्यास जग अपनी बुझा ले।
है इसी में जीत अपनी,
भूति वैभव हार जाना।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )