ढल के तुम में , मैं तुम हो गयी
तुम में ही अब , मैं गुम हो गयी !
छुपी हूँ देखो ! दिल में तुम्हारे
तुम समझे मैं रुखसत हो गयी !
क्यूं विचलित औ परेशां हो तुम
मुझ अभागन की तो जां हो तुम
मेरा न यहाँ कोई पता ठिकाना
बस एक अकेली पहचान हो तुम
निशां न मेरा अब कोई जग में
सदा को तुम में मैं गुम हो गयी !
तुम संग हँसती , तुम संग रोती
तुम संग जगती , तुम संग सोती
चुराके तुम्हारी पलकों से आँसू
आँचल में अपने उन्हें संजोती
चाँद से जब तुम चमके जग में
मैं माथे की कुमकुम हो गयी !
तुम सुमन हो मैं सुगंध तुम्हारी
तुम चमन हो और मैं फुलवारी
तुम हो चाँद मैं किरन तुम्हारी
तुम आधार मैं छाया तुम्हारी
तुमसे निकलती तुममें ढलती
सर से पां तुम ही तुम हो गयी !
ढल के तुम में, मैं तुम हो गयी
तुम में ही अब मैं गुम हो गयी !
-सीमा अग्रवाल
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