होंठ सी लिए !
अश्क पी लिए !
जमाने के लिए हम
ऐसे भी जी लिए !
दूर चले आए
दर से तुम्हारे
गठरी एक
गम की लिए !
तूफानों से तनहा
जूझ रहे हैं
डगमगाती-सी
कश्ती लिए !
तंज करेगी
क्या ये दुनिया
किस बात पर
और किसलिए !
विछोह के ऐसे
दंश हमने
उसकी खातिर
ही लिए !
-सीमा अग्रवाल
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