कह दो इन आँसुओं से, वापस न आना
मुझे साथ सनम के, भाता है मुस्कुराना !
रूठा है न जाने, आज क्यों वो मुझसे
तेवर तो देखो उसके, कैसे कातिलाना !
जाऊँ कहाँ मैं ये तो, जानता है वो भी
उस बिन न जहां में, कोई मेरा ठिकाना !
लाख जतन कर कर के, हाय ! मैं तो हारी
कोई तो सिखाए, कैसे है उसे मनाना !
मैं हूँ उसकी सीमा, विस्तार है वो मेरा
किस ओर उसे मैं ढूँढू, कहाँ उसका आशियाना !
-सीमा अग्रवाल
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