Sunday 18 January 2015

छुपे कहाँ हो सूरज अंकल

मुँह छिपाकर सर्दी से
      छुपे कहाँ हो सूरज अंकल !
उषा आंटी को भेज जग में
       रुके कहाँ हो सूरज अंकल !

सोलर सिस्टम के हो चीफ
  फिर भी इतने लेट लतीफ
  मनमानी ऐसी नहीं चलेगी
  सुन लो अंकल ! यू इन ब्रीफ !

रोज ही तो देर से आते हो
फिर बहाने खूब बनाते हो
नभ के ठिठुरते कागज पर
दस्तखत भर कर जाते हो !

दिखाकर अपनी एक झलक
फिर जाने कहाँ छुप जाते हो
देख दयनीय हालत हमारी
क्यूँ इस तरह मुस्कुराते हो !

तुम्हारी इस लेटलतीफी से
रुक जाते व्यापार जग के
कैसे चले जग बिना तुम्हारे
तुम ही तो आधार जग के !

कुहरे ने जाल पसारा देखो
ठंड का रुके न तांडव देखो
शीत ऋतु ने बोला है धावा
फहरा उसका परचम देखो !

गर तुम ही न सामने आओगे
विपक्षी से डर छिप जाओगे
छोड़ के यूँ पौरुष तुम अपना
क्या कायर नहीं कहलाओगे !

दिखाओ उग्र रूप सरदी को
बल का अपने प्रचार करो
बहुत सताया उसने हमको
अब तुम उस पर प्रहार करो

ठहर न जाए गति जीवन की
इस पर तनिक विचार करो
चेतना फूँक प्राणों में जग के
नवजीवन का संचार करो !

-सीमा अग्रवाल

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