Friday 26 September 2014

कह -मुकरनियाँ--

हर मुश्किल में साथ निभाए
बिगडे सब मेरे काम बनाए
रहता है दिल में आठों याम
ए सखि साजन ! ना सखि राम ।

आगे पीछे मेरे डोळे
कान में कोई मंतर बोले
समझ न आए एक भी अच्छर
ए सखि साजन ! ना सखि मच्छर ।

वो पास है तो जीने का सुख है
उसके बिना तो दुख ही दुख है
उसे समझ न लेना ऐसा-वैसा
ए सखि साजन ! ना सखि पैसा ।

तन मन का वह ताप मिटाए
उस बिन अब तो रहा न जाए
छुपा है जाने कहाँ मनभावन
ए सखि साजन ! ना सखि सावन ।

ले के मुझे आगोश में अपने
दिखाए मधुर-मधुर वो सपने
गुपचुप-गुपचुप करे फिर बात
ए सखि साजन ! ना सखि रात ।

दूध-सा उजला उसका रूप
सामने उसके टिके न धूप
पहचानो जरा, है कौन वो वन्दा
ए सखि साजन ! ना सखि चन्दा ।

जहाँ मैं जाऊँ साथ वो जाए
उस बिन मुझसे रहा न जाए
मुझे भाए उसका हर स्टाइल
ए सखि साजन ! ना मोबाइल ।

-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

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