Thursday 4 September 2014

भाई मुझको बुला रहा है---

भीगी आँखे देख रही हैं
चित्र कुछ धुँधले बचपन के
हाथों का अपने पलना बनाकर
भाई मुझको झुला रहा है ।

कभी खींचता नाक मेरी
कभी खींच देता है चोटी
कभी कहता गुडिया मुनिया
कभी चिढाता कहकर मोटी

उलटे सीधे नाम रखकर
देखो वो मुझको रुला रहा है ।

कल जल्दी फिर उठना है
अब तो प्यारी बहना सो जा
कल कर लेंगे बातें बाकी
अब मीठे सपनों में खो जा ।

आँखों में अपनी नींद लिए
थपकी दे मुझको सुला रहा है ।

पर क्या ! आज उदास बहुत वो
किसी गम ने उसको घेरा है
कहता है राह न सूझती कोई
चहुँ ओर गहन अँधेरा है

कुछ अपने मन की कहने को
भाई मुझको बुला रहा है ।

रोको न कोई आज मुझे
खोल दो इन पाँव की बेडी
जाना ही होगा आज मुझे
डगर हो चाहे कितनी टेढी

काँधे पर मेरे सर रखने को
भाई मुझको बुला रहा है ।

मेरा भाई मुझको बुला रहा है ।

डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

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