भीगी आँखे देख रही हैं
चित्र कुछ धुँधले बचपन के
हाथों का अपने पलना बनाकर
भाई मुझको झुला रहा है ।
कभी खींचता नाक मेरी
कभी खींच देता है चोटी
कभी कहता गुडिया मुनिया
कभी चिढाता कहकर मोटी
उलटे सीधे नाम रखकर
देखो वो मुझको रुला रहा है ।
कल जल्दी फिर उठना है
अब तो प्यारी बहना सो जा
कल कर लेंगे बातें बाकी
अब मीठे सपनों में खो जा ।
आँखों में अपनी नींद लिए
थपकी दे मुझको सुला रहा है ।
पर क्या ! आज उदास बहुत वो
किसी गम ने उसको घेरा है
कहता है राह न सूझती कोई
चहुँ ओर गहन अँधेरा है
कुछ अपने मन की कहने को
भाई मुझको बुला रहा है ।
रोको न कोई आज मुझे
खोल दो इन पाँव की बेडी
जाना ही होगा आज मुझे
डगर हो चाहे कितनी टेढी
काँधे पर मेरे सर रखने को
भाई मुझको बुला रहा है ।
मेरा भाई मुझको बुला रहा है ।
डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
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