जीवन की धुंधली छाया में,
छल-छद्म की बिखरी माया में,
फैलते गम के साए में और
सुख की सिमटी-सी काया में,
मैं ढूँढ ढूँढ कर हार गई मां,
अपना बचपन, तेरा आँचल !
जग के निष्ठुर उपहासों में,
सुख की बंजर-सी आसों में,
जीवन-मरण का खेल खेलती
चलती थमती-सी साँसों में,
मैं ढूँढ ढूँढ कर हार गई मां,
अपना बचपन तेरा आँचल !
- डाॅ0 सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
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