Monday 25 August 2014

मन मेरे तू सावन-सा बन - - -


मन मेरे तू सावन-सा बन ।
मृदुल मधुर भावों से अपने,
कर दे जग को पावन-पावन
मन मेरे तू सावन-सा बन ।

मिट जाए चाहे तेरी हस्ती
हरी-भरी हो जग की बस्ती
खिल उठें घर उपवन कानन
मन मेरे तू सावन-सा बन ।

तपते आतप से कितने प्राणी
उन्हें सुना राहत की वाणी
भर जाए खुशी से दामन-दामन
मन मेरे तू सावन-सा बन ।

जो पल पल तेरी राह निहारें
मिल तू उनसे बाँह पसारे
मुरझे न कोई आस भरा मन
मन मेरे तू सावन-सा बन ।

छाले पडे जिनके पाँव में
तेरे आँचल की शीत छाँव में
मिले उन्हें माँ-सा अपनापन
मन मेरे तू सावन-सा बन ।

स्नेह कण तूने किये जो संचित
रख मत उनसे जग को वंचित
बरसा उन्हें दे आँगन-आँगन
मन मेरे तू सावन-सा बन ।

- डाॅ0 सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

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