Sunday 17 August 2014

मेरे देश की हालत

मूक, लाचार, अबला-सी है, 
मेरे देश की हालत ।
शोक-निमग्ना, विह्वला-सी है, 
मेरे देश की हालत । ।

संरक्षक जिन्हें बनाया अपना, 
अस्मत वे ही लूट रहे हैं ।
खुद में सिमटी विवसना-सी है,
मेरे देश की हालत । ।

रूप रंग वैभव पर इसके,
कभी जग ये बलाएँ लेता था ।
अब तो उजडी बगिया-सी है,
मेरे देश की हालत । ।

खेल-खेल में अपनों ने ही,
अपने घर की लाज गंवाई ।
रोती, सिसकती, कृष्णा-सी है,
मेरे देश की हालत । ।

भाई भाई आपस में लडते,
हथौडे-से सीने पर पडते ।
गम सहलाती दुखिया मां-सी है,
मेरे देश की हालत । ।

जाने कहाँ गुम गई इसकी,
संस्कृति, सभ्यता, वाणी, वेश ।
अपने ही घर बेगानी-सी है ,
मेरे देश की हालत । ।

आजादी का जश्न मनाएँ,
या मातम आज बरबादी का !
जीवन से होती वितृष्णा-सी है,
देख देश की हालत । ।

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