Sunday 17 August 2014

कुछ हाइकू सावन पर

सावन आया 
कण- कण में भू के 
उन्माद छाया ।

बरसे मेघा
मिल एक हो गए
धरा-गगन ।

देखो धरा को
इठला रही कैसे
प्रेम-मगन ।

सजी पहन
हरित परिधान
नार नवेली ।

प्रिय-स्पर्श से
अंग- अंग रोमांच
कंपित धरा ।

आज प्रसन्न
सृष्टि का कण-कण
नाचे छनन ।

सावन आया
ओ पिया परदेसी
तुम न आए !

बरसें नैना
तुम बिन साजन
जैसे सावन ।

बेसुध सी मैं
अपलक नयन
राह निहारूं ।

किया था वादा
आओगे सावन में
तुम न आए !

सावन आया
सखियाँ झूलें झूला
कजरी गाएँ ।

कहती मैया
तरस गए नैना
आ जा अब तो !

आजा बहना
तुझे झुलाऊँ झूला
भाई बुलाए ।

आ न बहना
मिल याद करेंगे
गुजरे पल ।

कैसे मैं आऊँ ?
भाई तू ही बता न
राह न सूझे !

भुला न पाऊँ
यादें बचपन की
प्यार तुम्हारा ।

न हो उदास
छिपा नहीं मुझसे
दर्द ये तेरा ।

खुश रहना
पलकें न भिगोना
कसम तुझे ।

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