मुखमंडल पर ओज है, रविमंडल में वास।
जगतजननी कूष्मांडा, पूर्ण करो माँ आस।।
स्मित से माँ की बना, जग क्या सब ब्रह्मांड।
भोग कुम्हड़े का करें, नाम पड़ा कूष्मांड।।
प्रिय है माँ को कुम्हड़ा, बलि जो इसकी देत।
वरद हस्त रख शीश पर, दुखड़ा हर हर लेत।।
दमके मुखड़ा सूर्य सा, होत जगत उजियार।
दसों दिशाएँ दीप्त कर, हर लेती अँधियार।।
निर्माता ब्रह्मांड की, देती जीवन दान।
मन को निर्मल साफ रख, कर लो माँ का ध्यान।।
देवी कूष्माण्डा करें, चक्र अनाहत वास।
जननी ये ब्रह्माण्ड की, सोहे मुख पर हास।
माता के मन को रुचे, मालपुए का भोग।
भोग लगाए जो इन्हें, हर लें उसके रोग।।
चलें बैठ माँ शेर पर, करने जब आखेट।
चुन-चुन सारे दैत्य का, करतीं मटियामेट।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
फोटो गूगल से साभार
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