ख्वाब ही देखा किए हम, हो सका कब ख्वाब अपना।
प्यार की खातिर जिए हम, हो सका कब प्यार अपना।
याद है तुमने कहा था, साथ छोड़ेंगे न अब हम।
लाख मुश्किल रोज आएँ, मुँह न मोड़ेंगे कभी हम।
एक है मंजिल हमारी, साथ मिल पथ तय करेंगे।
प्राथमिकता क्या हमारी, मिल प्रथम निश्चय करेंगे।
पर कहाँ है आज प्रण वो, है कहाँ वो आज सपना।
जो दुआ देते तुम्हें नित, तुम उन्हीं को चोट देते।
ढाँपने गलती सभी फिर, फलसफों की ओट लेते।
टालना आदत तुम्हारी, मुकरना पहचान भर है।
फर्ज सारे भूलते तुम,ज्ञात बस अधिकार भर है।
छद्म ले डूबा हमें हा, शेष अब नित-नित तड़पना।
झूठ के भी पाँव होते, क्या कभी ऐसा सुना है ?
सत्य को छल से फँसाने, जाल फिर ये क्यों बुना है ?
झूठ कितना भी बली हो, सत्य पर झुकता कहाँ है।
राह सच की चल पड़ा जो, फिर कदम रुकता कहाँ है।
साँच पर यदि आँच आए, जानते उससे निपटना।
प्यार की खातिर जिए हम, हो सका कब प्यार अपना।
ख्वाब ही देखा किए बस, हो सका कब ख्वाब अपना।
© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
"कलम किरण" से
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