Monday, 7 April 2025

#राष्ट्रीयसबहमारादिवस

माँ प्रकृति के चरणों में....

जीवन जो तुमसे पाया है, कैसे उसका आभार करें।
नमन तुम्हें हम करते हैं माँ, निज शीश झुका,    स्वीकार करें।

तुम कुदरत हो तुम प्रकृति हो, 
तुम तो माँ की भी माता हो !
वक्त तुम्हारी शय पर चलता, 
तुम जग की भाग्य-विधाता हो !
नदी-सरोवर, चाँद- सितारे
जीव चराचर  जग के सारे
सब ही अपने बंधु-सखा हैं, क्यों बीच खड़ी दीवार करें।
नमन तुम्हें हम करते हैं माँ ! निज शीश झुका,    स्वीकार करें।

आ तो गए हम कोख से माँ की, 
पर स्पंदन तुमसे पाया है।
जीवन-सजीवन ऑक्सीजन दे, 
प्राणों को तुमने जिलाया है।
मान गए हम, जान गए हम, 
पत्ता भी तुमसे हिलता है।
भोली सी छवि आँक तुम्हारी, मूरत दिल में साकार करें।
नमन तुम्हें हम करते हैं माँ ! निज शीश झुका,    स्वीकार करें।

आतप-छाँह, जल-वायु देकर,
माटी में अपनी पोसा है।
खुशियाँ सकल जुटाईं हमको
तोड़ा हमीं ने भरोसा है।
इतने हैं उपकार तुम्हारे,
उऋण कभी क्या हो पाएँगे ?
स्वार्थ तजें परहित में रत हों, आत्म-तत्व का विस्तार करें।
नमन तुम्हें हम करते हैं माँ ! निज शीश झुका,    स्वीकार करें।

शपथ हमें दामन पे तुम्हारे, 
आँच न कोई आने देंगे।
बरसें सावन खुशियों के बस, 
मेघ न गम के छाने देंगें।
ज्यादा नहीं हमें कुछ लेना 
जो भी लेना, बढ़कर देना
इक दूजे से पाएँ भर-भर, प्रेम का सरल व्यापार करें
नमन तुम्हें हम करते हैं माँ ! निज शीश झुका,    स्वीकार करें।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
8 अप्रैल,
#राष्ट्रीयसबहमारादिवस
फोटो गूगल से साभार

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