बात ही कुछ उन दिनों की...
उन दिनों की बात में रस।
उन दिनों की रात में रस।
उन दिनों मौसम हसीं था,
उन दिनों बरसात में रस।
उन दिनों बातें निराली।
उन दिनों रातें उजाली।
उन दिनों सब कुछ सुखद था,
उन दिनों हर ओर लाली।
उन दिनों हर दिन रँगीला।
उन दिनों सावन सजीला।
साँझ पलकों पर उतरती,
आँजती अंजन लजीला।
उन दिनों हँसना सरल था।
भावभीना मन तरल था।
बोल अमृत से सने थे,
उन दिनों कब ये गरल था।
उन दिनों को याद करके,
आँख से आँसू बरसते।
उन दिनों की बात क्या,अब
बात करने को तरसते।
आज भी ठहरे वहीं हम,
उन दिनों को जी रहे हैं।
रिस रहा हर पोर से जो,
अर्क नेहिल पी रहे हैं।
हूक सी मन में उठी है,
उन दिनों को छीन लाएँ।
टूटकर छिटकी कहीं जो,
हर कड़ी वो बीन लाएँ।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
"गीत सौंधे जिंदगी के" से
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