Wednesday 21 July 2021

किन्नर व्यथा..

किन्नर व्यथा पर...

जिस जननी ने जाया हमको, किया उसने ही हमें पराया।
जिस पिता का खून रगों में, उसे भी हम पर तरस न आया।
अन्याय  समाज और अपनों का, जन्म लेते ही हमने झेला।
उलझे रहे नित प्राण हमारे, जीवन के सम-विषम में।

कोख वही सेती है हमको,बीज वही पड़ता है हममें।
बिगड़ा मेल गुण-सूत्रों का, जो रह गयी कमी कुछ हममें।
लाडले हो तुम मात-पिता के,  हम उनके ठुकराए हैं।
एक ही माँ के जाये हम-तुम, अंतर क्या तुममें हममें ?
- ©  सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

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