कोई अपना उपमान नहीं है....
शून्य जीवन, एक दिल, दो नयना,आँसू अनगिन, गम बेशुमार
कितना रोना लिखा भाग्य में, हमें किंचित अनुमान नहीं है।
मन-पृष्ठ कोरे, सूखी स्याही
रहती गमों की आवाजाही
हर चाह से करती किस्मत
हफ्ता बसूली और उगाही
दुख से युगों-युगों का नाता, सुख से कोई पहचान नहीं है
हम जैसे बस एक हमीं हैं, कोई अपना उपमान नहीं है
मीलों दूर चले आए हम
बचपन पीछे छोड़ आए
नव्य तलाशने की खातिर
संबंध पुराने तोड़ आए
जड़ों से अपनी कटकर जीना इतना भी आसान नहीं है
भाग्य हीनता आयी हिस्से
आँसू हुए बदनाम हमारे
टीस, घुटन, संत्रास, वेदना
लिखे गये सब नाम हमारे
गिन-गिन फलीं सब बद्दुआएँ, फला कोई वरदान नहीं है
हम जैसे बस एक हमीं हैं, कोई अपना उपमान नहीं है
- © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
"मनके मेरे मन के" से
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