Friday, 7 March 2025

हम न थे...


१- हम न थे...

चाँद भी था चाँदनी भी, हमनशीं भी हम न थे।
साथ में थे सब सितारे,   बदनसीबी हम न थे।

चल रहे थे साथ हिलमिल, हम सदा से आज तक।
था वही क्या एक अपना, हमकदम क्या हम न थे ?

क्या कहें दिल की लगी को, होश ही गुम हो रहे।
जी रहे थे शान से हम, जब तलक ये गम न थे।

झेलते संघर्ष पग-पग, आ गये इस मोड़ तक।
जिंदगी में रोज घटते,  हादसे भी कम न थे।

दूर तक वीरानगी थी, चुप्पियों को चीरती।
थीं कहाँ अब वे फिजाएँ, वे हसीं मौसम न थे।

हो गया सुख-साज सपना, याद ही कुछ शेष हैं।
दोष सब ये भाग्य का है, सच फरेबी हम न थे।

रच रहा षड़यंत्र कोई, था हमें 'सीमा' यकीं।
जी रहे थे आस में बस, मुतमइन पर हम न थे।

मुतमइन- आश्वस्त, संतुष्ट, बेफिक्र

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
पुस्तक 'कलम किरण' से

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