१- हम न थे...
चाँद भी था चाँदनी भी, हमनशीं भी हम न थे।
साथ में थे सब सितारे, बदनसीबी हम न थे।
चल रहे थे साथ हिलमिल, हम सदा से आज तक।
था वही क्या एक अपना, हमकदम क्या हम न थे ?
क्या कहें दिल की लगी को, होश ही गुम हो रहे।
जी रहे थे शान से हम, जब तलक ये गम न थे।
झेलते संघर्ष पग-पग, आ गये इस मोड़ तक।
जिंदगी में रोज घटते, हादसे भी कम न थे।
दूर तक वीरानगी थी, चुप्पियों को चीरती।
थीं कहाँ अब वे फिजाएँ, वे हसीं मौसम न थे।
हो गया सुख-साज सपना, याद ही कुछ शेष हैं।
दोष सब ये भाग्य का है, सच फरेबी हम न थे।
रच रहा षड़यंत्र कोई, था हमें 'सीमा' यकीं।
जी रहे थे आस में बस, मुतमइन पर हम न थे।
मुतमइन- आश्वस्त, संतुष्ट, बेफिक्र
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
पुस्तक 'कलम किरण' से
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