सीख पायी हूँ तुम्हीं से...
था नहीं आसान मुझको,
लिख रही जो गीत लिखना।
सीख पायी हूँ तुम्ही से,
हार पर भी जीत लिखना।
'ये उदासी के अँधेरे,
कुछ पलों में दूर होंगे।
जो करें अपमान तेरा,
मान उनके चूर होंगे।'
थाम कर तुमने सिखाया,
युद्ध को संगीत लिखना।
खामियाँ हैं हर किसी में,
कौन है संपूर्ण जग में ?
तुम सदा ही सीख देते,
क्या रखा है दुश्मनी में ?
थे तुम्हीं जिसने सिखाया,
शत्रु को भी मीत लिखना।
आ रहे अब काम मेरे,
पाठ जो तुमने सिखाए।
कर रही हूँ पूर्ण चुन-चुन,
स्वप्न जो तुमने दिखाए।
था मुझे अनुभव कहाँ ये,
बादलों पर प्रीत लिखना।
सीख पायी हूँ तुम्हीं से,
हार पर भी जीत लिखना...
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
" गीत सौंधे जिंदगी के" से
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