Thursday, 20 March 2025

चिड़िया बैठी सोच में...

छाया दी जिस वृक्ष ने,    पोसा देकर अन्न।
आज उसी को काटता, मानव बड़ा कृतघ्न।।

चिड़िया बैठी सोच में, तिनका-तिनका जोड़।
रचूँ नीड़  किस  वृक्ष पर, कब मानव दे तोड़।।

छीन रहे हम स्वार्थ-वश, वन्य-जीव आवास।
पशु-पक्षी बेघर हुए,           झेल रहे संत्रास।।

नीड़-माँद उजड़े सभी, बिखरे तिनका-पात।
खग-मृग मन-मन कोसते, क्या मानव की जात।।

पादप सत के रोपिए,  पनपे अंतस - बोध।
अहं भाव को रोकिए, बस इतना अनुरोध।।

मिले फसल मनभावनी,        बिरबे ऐसे रोप।
फल आशा-अनुरूप हो, झलके आनन ओप।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
'किंजल्किनी' से

फोटो गूगल से साभार


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