जल पर निर्भर जिंदगी, जल जीवन आधार।
व्यर्थ न जाए बूँद भी, खुली न छोड़ो धार।।
वर्षा जीवनदायिनी, वर्षा-जल अनमोल।
बूँद-बूँद संग्रह करो, बिन पैसे बिन तोल।।
कुएँ - वापी - बाबड़ियाँ, नौले - मँगरे - ताल।
अक्षय जल के स्रोत ये, रक्खो इन्हें सँभाल।।
जल के प्राकृत स्रोत सब, होते जाते लुप्त।
जल संकट गहरा रहा, पड़े हुए हम सुप्त।।
वर्षा जल की खान हैं, जल जीवन-आधार।
सूख न पाएँ स्रोत ये, भरें रहें भंडार।।
जल संस्कृति को जान नर,जल है देव समान।
मिट न जाए परंपरा, कर इसका सम्मान।।
लुप्तप्राय जलस्रोत सब, देख रहे हम मूक।
गहराता संकट विकट, उठती मन में हूक।।
पानी बिन जीवन नहीं, वर्षा जल की खान।
बूँद-बूँद संग्रह करो, इसका अमृत जान।।
बूँद-बूँद से बीज में, डाल रहे तुम जान।
धन्य-धन्य पर्जन्य तुम, करते कर्म महान।।
वर्षा जल की खान है, जीवन से लवरेज।
व्यर्थ न हो इक बूँद भी, रख लो इन्हें सहेज।।
जंगल-जंगल कट रहे, सूख रहे जल स्रोत।
लिप्सा बढ़ती जा रही, घटती जीवनजोत।।
सूख रहे जल स्रोत सब, सूखा करे प्रलाप।
पिघल रहे हैं ग्लेशियर, बढ़ता जग का ताप।।
सत्रह प्रतिशत लोग हैं, जल का प्रतिशत चार।
भारतवासी भूलते, जल जीवन-आधार।।
संरक्षण जल का करें, जाया करें न बूँद।
बेफिक्रे सोएँ नहीं, दोनों आँखें मूँद।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
दोहा संग्रह 'किंजल्किनी' से
फोटो गूगल से साभार
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